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________________ ६५-६७] चतुर्विंशः सर्गः । १११६ निपूतपादाभिगमाभिलाषुको निपूतपादः स्वयमप्यथासको । जयेति वाचा कथितः श्रिया युतं जयेति वाचा गृहमाविशत्तराम् ॥६५॥ निपूतपादेत्यादि-अथासौ जयेति वाचा कथितो नरो निपूतो नितरां पवित्रौ पादौ यस्य तस्य भगवतोऽभिगमः सम्पर्कस्तस्याभिलाषुको लोलुपोऽसावेवासकावतः स्वयमपि निपूतपादः प्रक्षालित चरणो भूत्वा जयेति वाचा जय जयेति त्रिरुच्चरन् श्रिया युतं गृहं श्रीसदनं तदाविशत्तरां प्राप्तवानिति ॥६५॥ समुन्ननामातिलघु प्रभोः पुरो वयं मिलित्वा शययोश्च साम्प्रतम् । शिरः स्वयं भक्तितुलाधिरोपितं गुरुत्वतश्चावननाम भूपतेः ॥६६॥ समुन्नानामेत्यादि-प्रभोरहंतः पुरोऽग्ने भूपतेर्जयकुमारस्य भक्तितुलायामधिरोपितं शययोः करयोयमपि मिलित्वाऽति लघु च ततः साम्प्रतमुन्ननामोपयुत्थितम्, किन्तु शिरस्स्वयं गुरुत्वतो महत्त्वभावतोऽवननाम नम्रमभूत् ॥६७।। लुठन् भुवीह प्रणनाम दण्डवज्जिनं यथासौ शरणागतः स्मरः । तघ्रियुग्मे कुसुमानि साम्प्रतं निजीयशस्त्राणि समय सावरः॥६७॥ लुठन्नित्यादि-असौ जयकुमार इह साम्प्रतमधुना सादर आवरयुक्तो भवन् तस्य जिनदेवस्याध्रियुग्मे चरणद्वये कुसुमानि पुष्पाणि समर्प्य निजीयशस्त्राणि, शरणागतः स्मरः कामो यथा तथा जिनं भगवन्तं वण्डव भुवि लुठन् प्रणनाम ॥६७॥ अर्थ-जिन्हें भगवान् जिनेन्द्रके संपर्ककी अभिलाषा है तथा जिन्होंने चरण धोये हैं, ऐसे जयकुमारने जय जय शब्दका उच्चारण करते हुए श्रीगृहमें प्रवेश किया ॥६५॥ अर्थ-इस समय भक्तिकी तराजू पर चढ़े हुए राजा जयकुमारके दोनों हाथ परस्पर मिल कर प्रभुके आगे शीघ्र ही ऊपर उठ गये, परन्तु भक्ति रूप तराजू पर चढ़ा हुआ राजाका शिर गुरुता-महत्ताके कारण स्वयं नीचेकी ओर झुक गया। तात्पर्य यह है कि राजाने हाथ जोड़ कर तथा शिर झुका कर प्रभ को नमस्कार किया ॥६६॥ __ अर्थ-उस समय जयकुमारने भगवान्के चरणयुगलमें पुष्प चढ़ाकर पृथिवी पर लोटते हुए, दण्डवत् प्रणाम किया । पुष्प चढ़ाकर प्रणाम करते हुए जयकुमार ऐसे जान पड़ते थे, मानो अपने शस्त्र (पुष्प) समर्पित कर कामदेव ही आदरपूर्वक शरणमें आया हो ।।६७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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