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लेकर बैठ गई-निमीलित हो गई और चन्द्रमा शोचनीय अवस्थाको प्राप्त हो गया। राजाके सामने अपराधियोंकी यह दशा होती है । निःस्नेह अतएव बुझनेके सन्मुख दीपककी अवस्था देखियेनिःस्नेहजीवनतयापि तु दीपकस्य
संशोच्यतामुपगतास्ति दशा प्रशस्य । संपूर्ण्यमानशिरसः पलितप्रभस्य,
यद्वन्मनुष्यवपुषो जरसान्वितस्य ॥४१।। हे प्रशंसनीय ! जिसका शिर काँप रहा है और बाल सफेद हो गये हैं ऐसे वृद्ध मनुष्यकी दशा-अवस्था जिस प्रकार स्नेह-प्रीति रहित जीवन होनेसे शोचनीय हो जाती है उसी प्रकार जिसका अग्रभाग काँप रहा है और जिसकी प्रभा क्षीण हो रही है ऐसे दीपककी दशा-वत्ती स्नेह-तैल रहित जीवन होनेसे शोचनीय अवस्थाको प्राप्त हो रही है। दार्शनिक पद्धतिसे प्रभातका वर्णन करने वाले कविकी श्लेष प्रियता देखियेकूटस्थतां खरमरीचिरुपैति तात !
भ्रष्टाध्वरो भवति वा द्विजराडिहातः । स्याद्वादवागुदितपिच्छमगस्य वृत्ति
.. स्सा सौगताय नियता क्षणदाप्रवृत्तिः ॥१०॥ हे तात ! खरमरीचि-सूर्य, कूटस्थता-पूर्वांचलकी शिखर पर स्थितिको प्राप्त हो रहा है । पक्ष में प्रखर वक्ता-स्पष्टवादी मरीचि-सांस्यमतका प्रवर्तक कूटस्थता-नित्यैकबादको प्राप्त हो रहा है (पक्षमें ब्राह्मण भ्रष्टाध्वर-हिंसक यज्ञको प्राप्त हो रहा है।) पूंछको ऊपर उठाने वाले मुर्गोंकी वृत्ति शब्दको प्राप्त हो रही है, अर्थात् मुर्गे बोल रहे हैं । (पक्षमें मयूरपिच्छको धारण करने वाले दिगम्बर मुनियोंकी वृत्ति स्याद्वाद वाणीको प्राप्त हो रही है और क्षणदा-रात्रिको प्रवृत्ति गताय नियता-अच्छी तरह समाप्त हो गई है (पक्षमें सौगत-बौद्धमतको प्राप्त हो गई है-क्षणिकवादको स्वीकृत कर रही है ।)
प्रातःकालके समय होने वाली दिन रातकी सन्धिका वर्णन करते हुए कविने जिस उपमालंकारका प्रयोग किया है उसका रहस्य देखिये कितना गहरा हैनो नक्तमस्ति न दिनं न तमः प्रकाशः
नैवाथ भानुभवनं न च भानु भासः । इत्यहतो नृप ! चतुर्थवचो विलास
सन्देशके सुसमये किल कल्यभासः ॥६२॥ १. जैनेन्द्र व्याकरणमें ह्रस्वकी प्र, दीर्घ की दी, और प्लुतकी प संशा होती है ।
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