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________________ १०७९ ७५-७६ ] त्रयोविंशतितमः सर्गः सौकान्ते भवदेव एव च पुनः कापोतकेऽप्योतकः हारिण्ये च भवे तवेश समभूविद्युच्चरः कौतुकः। स्वर्गीये त्वयि भीमनाम मुनिराड् योऽसौ भवोच्छेदकः सरवानामिह संसतौ परिणतेर्वैचित्र्यसंवेशकः ॥७॥ सौकान्त इत्यादि हे ईश ! स्वामिन् ! तव सौकान्ते सुकान्तस्य जन्मनि यो भवदेवः समभूत्, कापोतके कपोतजन्मनि य ओतुको विडालः समभूत्, तव हारिष्ये हिरण्यवर्मनामविद्याधरजन्मनि तु को पृथिव्या यो यम इव विधुच्चरश्चौरः समभूत्, त्वयि स्वर्गीपे वेवे सति स एव भीमनामा मुनिराडभूत्, यो भवोच्छेदको जन्ममरणनाशकः केवलो समभूत, यः किलेह संसृतौ संसारपद्धतौ सत्त्वाना जीवानां परिणतेः कस्य कदा कोवृक् परिणमनं स्यादित्यनिश्चितत्वस्य वैचित्र्यस्य सन्देशकः समभूत् । तुकार इहेवार्थकः ॥७५॥ सदा हे साधो ! प्रभवति असुमति कर्म (स्थायी) कः खलु हर्ता को भुवि भर्ता कस्य विना निजकर्म । सदा हे. उप्तमिवोक्तमस्य फलतीह तु यो विलसत्यपशर्म । सदा हे. दुरिताद् दुर्गतिमेति जनोऽसौ शुभतो विलसति नर्म । भूरामल यदि नैव रोचते संवरमुपसर वर्म ॥ सदा हे० ॥७६॥ सदेत्यादि-हे साधो ! शृणु असुमति शरीरधारिणि कर्म तस्य चेष्टितमेव प्रभवति शुभाशुभफलदायकं भवति । अस्यां निजकर्म विनाऽन्यः कः कस्य हर्ता विनाशका कश्च भर्ता रक्षक: स्यान्न कश्चिदपि । इह तु पुनरुप्तं भूमौ प्रक्षिप्तमिवोक्तमुपरि निविष्टं अर्थ-हे स्वामिन् ! आपके सुकान्त भवमें जो भवदेव था, कबूतरके भवमें बिलाव हुआ था, हिरण्यवर्मा नामक विद्याधरके भवमें पृथिवी पर जो यमके समान विद्युच्चर चौर था और आपके स्वर्ग सम्बन्धी देव होने पर जो जन्ममरणका नाश करनेवाला भीम नामका केवली हुआ, इसप्रकार संसारमें जीवोंकी परिणतिसे किसका कब कैसा परिणमन होता है, इस विचित्रताका सन्देश देनेवाले वह केवली थे ।।७५।। अर्थ-हे साधो ! इस.जगत्में प्राणीपर कर्म ही अपना प्रभाव दिखाता है। पृथिवी पर स्वकृत कर्मके बिना कोन हर्ता है और कौन भर्ता है ? इसने जैसा बोया है उसीके अनुसार फल देता है भले ही दुःख हो यह जीव पापसे दुर्गतिको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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