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________________ ६३-६५ ] त्रयोविंशतितमः सर्गः परहरणे भरणे स्वयं पुनरनुभवता दुर्नाम । अयशः परिहरणाय दत्तं त्वया तु नैकविदाम ॥गतमायुः ॥६३॥ परहरण इत्यादि-परेषां जीवानां हरणे संहारकरणे स्वयं भरणे स्वस्य सम्पोषणे 'पुनर्वारं वारं दुर्नामापयशोऽनुभवता समर्जयता त्वयाऽपयशः परिहरणायात्र तु नैकविदामापि वतम् ॥६३॥ बहु वलितं गलितं वयो रे सम्प्रति पलितं नाम । अलमालस्येनास्तु शठ ! ते स्वीकुरु शान्तिसुधाम ॥गतमायु:०॥६४।। बह वलितमित्यादि-रे शठ ! सम्प्रति बहु वलितं शरीरं वलिभिाप्तमभूत् तथा वय आयुरपि गलितं निर्गतं प्रायः पलितं नाम शिरसि श्वेतकेशत्वमभूत् तदत्र ते किलालस्येनालमस्तु, तावबघुना तु शान्तः सुधाम निराकुलतकान्तं स्वीकुरु ॥६॥ माया महतीयं मोहिनी जनतायां भो ! माया (स्थायी) भूरामाधामादिधरायामिह सातङ्कजरायाम् । काशा परमर्मच्छिविरायां करपत्रप्रसरायाम् ॥ इह जनतायां०॥६५॥ मायेत्यादि-भो पाठकजन ! शणु जनतायामियं मोहिनी माया मोहसम्बन्धिनी परिणतिः सा महतो दुनिवारास्ति यस्यां भूरामाषामादिधरायां भूः पृथिवी रामा स्त्री धाम गृहमित्येवमाविषरायां तत्प्रपञ्चयुक्तायां तथातङ्कन सहिता जरा यस्यां तस्यां सातङ्कजरायां तथा परेषां मर्मणां छिदि छेवनं राति स्वीकरोति तस्याः करपत्रस्य प्रसरो यस्यास्तस्यामिह मायायां का किलाशा समाश्वासनावस्था, किन्तु न कियत्यपि ॥६५॥ करते हुए तेरी समस्त आयु व्यतीत हो गई है ॥६२॥ अर्थ-दूसरे जीवोंका संहार करने और अपने आपके संपोषण करने में भारी अपकीर्तिका अनुभव करते हुए तूने अनेक प्रकार दान भी दिया है ।।६३।। अर्थ-रे मूर्ख ! इस समय तेरा शरीर झुर्रियोंसे व्याप्त हो गया है, आयु प्रायः बीत चुकी है और शिर पर सफेदी आ गई है, अतः आलस्यसे विरत हो और शान्तिका सुन्दर स्थान प्राप्त कर ॥६४॥ अर्थ-हे पाठक जन ! सुनो, जनता-जन समूहमें जो मोहिनी माया है वह अत्यन्त दुर्निवार है, यह पृथिवी स्त्री तथा मकान आदिकी आकुलतासे सहित है, आतङ्क युक्त वृद्धावस्थासे युक्त है, दूसरेके मर्मको छेदने वाली है और करपत्र-करोंतके प्रसारसे सहित है, इसमें तुझे क्या आशा है, अर्थात् सुखसन्तोष प्राप्त करनेकी क्या संभावनी है ? कुछ भी नहीं ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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