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दूसरी बात यह है कि यद्यपि पवन स्त्रीजनोंके स्तन तटोंसे ताड़ित हुआ, उसे उनके कटि प्रवेश पर गिरना पड़ा, नाभि तकके प्रदेशों में घूमना पड़ा और नितम्ब शिखरोंसे अवरुद्ध होना पड़ा, फिर भी वह चूँकि सम्प्रबुद्ध-ज्ञानवान था, अतः शुद्ध निर्विकार रहकर धीरे-धीरे-सावधानीसे चल रहा है। ___ पक्षी जागकर घोंसलोंमें कलकल ध्वनि कर रहे हैं, इसके लिए कविकी मौलिक "उत्प्रेक्षा देखिएव्योम्नि स्थिति भरुचितां समतीत्य दीने,
राज्ञोऽपवर्तनदशो प्रतिपद्य हीने । सद्योऽथवाभ्युदयनेतरि भावनाना
__माद्येऽर्थवत्यपि पदे विकृतोक्तिमानात् ॥८॥
जब आकाश, राजा-चन्द्रमा (पक्षमें नृपति) की अपवर्त दशा-अस्तोन्मुख अवस्था (पक्षमें कुत्सित शासन प्रवृत्ति) को प्राप्त कर भरुचितां-नक्षत्रोंसे देदीप्य'मानता (पक्षमें भरुचितां सुवर्णसम्पन्नता) को छोड़कर दीन हो गया-प्रभाहीन हो गया (पक्षमें निधन हो गया) तथा सूर्य शीघ्र ही अभ्युदय-उदय (पक्षमें सम्पन्नता) को प्राप्त हो गया, तब पक्षी अपनी कलकल ध्वनिसे आगमोक्त बारह भावनाओंमें से प्रथम भावना-अनित्य भावनाको सार्थक कर रहे थे । भाव यह है कि राजा-चन्द्रमा रूपी एक राजाका अस्त होना और सूर्य रूपी अन्य राजाका उदित होना, इससे संसारकी अनित्यताको पक्षी अपनी कलकल ध्वनिसे प्रकट कर रहे हैं । चन्द्रमा निष्प्रभ हो गया है । क्यों ? इसका उत्तर कवि से पूछिएयन्मीलितं सपदि कैरविणीभिराभिः
क्षीणा क्षपाऽस्तमितमच्युत तारकाभिः । संचिन्तयन्दयितदारतयेन्दुदेवः
प्राप्नोति पाण्डुवपुरित्यथवा शुचेव ॥२१॥ चन्द्रमाकी तोन स्त्रियाँ थीं-१. कुमुदिनी, २. रात्रि और ३. तारा । इनमेंसे इस समय कुमुदिनी मूच्छित हो गई, रात्रि नष्ट हो गई और तारा अस्तमित हो गई, मर गई। यतश्च चन्द्रमा स्त्रीप्रेमी था, अतः अपनी तथोवत्त स्त्रियोंके विषयमें चिन्ता करता हुआ मानों शोकसे ही पाण्डु--श्वेत शरीरको प्राप्त हो रहा है । हि + इने इतिच्छेदः 'इनःपत्यौ नृपे सूर्ये' इति विश्वलोचनः । २ 'राजा प्रभी नृपे चन्द्रे' इति विश्वः।
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