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________________ ५०-५२] त्रयोविंशतितमः सर्गः १०७१ धर्म इत्यादि-धर्म एव खलु जनानां शर्महेतुः कल्याणकर ईष्यते, यस्य संविधानाकरणात् किरिरेव ग्रामसूकरोऽपि हरिरिन्द्रः समस्तु ॥४९॥ प्राप्तोऽथ हिरण्यवर्म नाम रतिवरः सशर्म । प्रभावती सा च धर्मकर्मसंविधानात् ॥५०॥ प्राप्त इत्यादि-अथ सशर्म शान्तिसहितं धर्मकर्मणो धर्मानुष्ठानस्य संविधानात् स रतिवरः कपोतो नरजन्म लब्ध्वा हिरण्यवर्मनाम प्राप्तः । सा रतिषणा कपोती च नारीजन्म लब्ध्वा प्रभावती नाम बभूव ॥५०॥ तद्गतखगसानुमति ह्यादित्यगतिर्नृपतिः । शशिभा युवतिश्च सती तयोस्तुक् स वा ना ॥५१॥ तबगतेत्यादि-स रतिवरस्तदेशगतखगसानुमति विद्याधरपर्वते विजयात्रै नाम्ना सावित्यगतिनरपतिस्तस्य युवतिः स्त्री सती शशिप्रभा तयोर्वयोः स तुक पुत्रो बभूव, यस्य हिरण्यवर्माऽभूदिति ज्ञेयम् ॥५१॥ अपरोऽत्र नृपः समभाद्वायुरथः स्वयंप्रमा। राजी चैतयोः प्रभावती जायमाना ॥५२॥ अपर इत्यादि-अत्रैव पर्वतेऽपरो वायुस्यो नाम नृपः, स्वयंप्रभा नाम राज्ञी च । तयोईयोस्सा रतिवेणाऽऽगत्य जायमाना सती प्रभावती समभात् ॥५२॥ अर्थ-यथार्थमें धर्म ही मनुष्योंके सुखका हेतु माना जाता है, क्योंकि उसके करनेसे ग्राम सूकर भी इन्द्र हो सकता है ॥४९॥ अर्थ-धर्मानुष्ठानके करनेसे रतिवर कबूतर सुखसहित हिरण्यवर्म नामको प्राप्त हुआ और रतिषणा कबूतरी प्रभावती नामको प्राप्त हुई। भावार्य-धर्मके प्रभावसे दोनोंने मनुष्य जन्म प्राप्त किया । वहाँ रतिवरका जीव हिरण्यवर्मा और रतिषेणाका जीव प्रभावती हुआ ॥५०॥ अर्थ-उसी देशके विजयाध पर्वत पर आदित्यगति राजा रहता था, उसकी स्त्रोका नाम शशिप्रभा था। उस दोनोंके रतिवर-कबूतरका जीव हिरण्यवर्मा नामका पुत्र हुआ ॥५१॥ अर्थ-इसी पर्वतपर वायुरथ नामका दूसरा राजा रहता था, उसकी रानी का नाम स्वयंप्रभा था। उन दोनोंके यहाँ रतिषेणाका जीव प्रभावती नामकी पुत्री हुई ॥५२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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