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________________ ३७-३९ ] त्रयोविंशतितमः सर्गः १०६७ वपुषास्तु च भिन्नता सदा न हृदा किन्तु कवापि सम्पदा । निरुवाच समं समुद्भवन्नवधिस्तेन सुचक्षुषो नवः ॥३७॥ वपुषेत्यादि-जयसुलोचनयोश्च वपुषा शरीरेण सदा भिन्नतास्तु पृयक्ता भवेत् किन्तु हवा मनसा सम्पदा गुणोत्कर्षेण च कदापि भिन्नता नास्त्विति किल तेन जयकुमारेण समं सामेव सुचक्षुषः सुलोचनाया अपि समुवन्नवषिर्यत्र किल नवस्तत्कालजातः स निस्वाच कथितवान् । 'स्त्रियां सम्पद्गुणोत्कर्षः' इति विश्वलोचने ॥३८॥ यवसिञ्चवहो भवस्मृतिः सुशस्तत्र सदाशिकावति । हृदि सम्पविवाय दीपकः समभात् सोऽवषिरप्यहीनकः ॥३८॥ यवित्यादि-सुशः सुलोचनायास्तत सदाशिकावति समीचीनाभिलाषायुक्ते हदि मनसि यत्किन्धिवहो चिन्तनं भवस्मृतिर्जातिस्मरणवृत्तिरसिञ्चदुत्पादयामासाथ तत्र सम्पविध गुणकारक इवाहीनक: समुत्कृष्टः सोऽवषिरपि दीपकः समुयोतनकरः समभात् ॥३८॥ ममापि मे मण्डनकस्य शस्यते मनोऽन्यजन्मादि यतः समस्यते । अहो रहोऽवस्तु महोत्सवाय नस्तयोरभूवित्यनुशासनं मनः ॥३९॥ - भमापीत्यादि-अहो ममापि मे मण्डनकस्य स्वामिनोऽपि मनो हृदयं शस्यते नेमल्यमधिगच्छति यतः किलान्यजन्मादि समस्यते शायतेऽव इदं रहो रहस्यं नोऽस्माकं महोत्सवाय प्रसादायास्ति किलेत्यनुशासनं विचारयुक्तं तयोर्मनोऽभूत् ॥३९॥ भावार्थ-जातिस्मृतिने पूर्वभवका स्मरण कराया, परन्तु समस्त भ्रमोंका निवारण अवधिज्ञानने किया ॥३६॥ __ अर्थ-जयकुमार और सुलोचनामें शरीरसे भिन्नता भले ही हो पर हृदय और गुणोंकी अधिकतासे भिन्नता नहीं थी। यही कारण था कि सुलोचनाको भी जयकुमारके साथ ही नवीन अवधिज्ञान उत्पन्न होता हुआ सब वृत्तान्त कहने लगा ॥३७॥ अर्थ-समीचीन अभिप्रायसे सहित सुलोचनाके जिस हृदयमें जातिस्मरण उत्पन्न हुआ था उसीमें उत्कृष्ट अवधिज्ञान दीपकके समान सुशोभित होने लगा ॥३८॥ __अर्थ-आश्चर्य है कि मेरा और मेरे स्वामीका भी मन निर्मलताको प्राप्त हो रहा है जिससे अन्य जन्म सम्बन्धी यह रहस्य स्पष्ट ज्ञात हो रहा है । हमारे लिये यह बड़ी प्रसन्नताकी बात है, इस प्रकारका विचार दोनोंके मनमें ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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