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१०६० जयोदय-महाकाव्यम्
[१८-२० ब्रवीभवन् सन् आतां गच्छन् अपि च दयालुतामूरीकुर्वन्नपि च परिवारितया चन्दनादि. कुटुम्बवत्तया वृतो युक्तोभवन् परिचेतुमागतस्तस्य शरीरे लग्नो बभूवेत्युत्प्रेक्षालंकारः॥१७॥ इहैव जातिस्मृतिमाश्रिता मतिपरावृति प्राप सुलोचना सती। विलोक्य पारावतजम्पतो रतीत्युपांशु लात्वा वरनाम सम्प्रति ॥१८॥
इहैवेत्यादि-इहवावसरे सती सुलोचनापि पारावतजम्पती कपोतयोमिथुनं विलोक्य रतीत्येवनुपांशु विशेषणं यस्य तद्वरनाम लात्वा जातिस्मृति पूर्वजन्मनः स्मरणमाश्रिता। सती मतिपरावृति प्राप सम्मूच्छिता बभूव सम्प्रति तत्कालम् ॥१८॥ अभूत् सभाया मनसोऽतिकम्पकृत्तवत्र कष्टऽप्यतिकष्टमिष्टहृत् । यथैव कुष्ठे खलु पामयाऽजनि अहो दुरन्ता भवसंभवावनिः ॥१९॥ ___ अभूदित्यादि-तदेतद् वृत्तं यविष्टहृत् किलाभीष्टस्य विनाशकृवत्र कष्टेऽप्यतिकष्टमत एव सभायास्तत्रस्थप्रजाया मनसोऽतिकम्पकृदत्यन्तविच्छेदकारि अभूयथा खलु कुष्ठे रोगे पामयाजनि जातम् । अहो भवसम्भवाऽसावधनिर्दुरन्ता दुःखेनावाप्तुं योग्यास्ति । अर्थान्तरन्यासः ॥१९॥ अभूत् सतामेवमधीरता हिया विचार्यतामेव पुनः प्रतिक्रिया । कुतो विपत्तेस्तरणं भवेद्धियाऽत्र तन्नियुक्ता जनताऽगवप्रियाम् ।।२०॥ . अभूवित्यादि-ह्रिया विवशताजन्ययाऽथ पुनः प्रतिक्रिया विधार्यतामेव कुत उपा
करनेके लिये आया था।
भावार्थ-मूर्छा दूर करनेके लिये कर्पूरमिश्रित चन्दनका लेप लगाया गया था ॥१७॥
अर्थ-इसी अवसर पर सती सुलोचना भी कबूतर-कबूतरीका युगल देख कर 'हा रतिवर' ! यह शब्द कह जातिस्मरणको प्राप्त हो मूच्छित हो गई ।।१८॥
अर्थ-अभीष्टका हरण करने वाला यह प्रकरण प्रजाजनके मनको कम्पित करता हुआ कष्टमें भारी कष्टके समान हुआ। ऐसा लगा जैसे कोढ़में खाज हो गई हो । वास्तवमें जन्मसे सहित यह पृथिवी दुरन्त है-दुःखरूप परिणामसे सहित है, अर्थात् जिसका जन्म होता है उसका वियोग भी होता है ।।१९।।
अर्थ-इस तरह वहाँ विद्यमान मनुष्योंमें लज्जाके कारण यद्यपि अधीरता-अव्यवस्थित चित्तता हो रही थी, फिर भी इस विपत्तिसे संतरण किस
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