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________________ १०४२ जयोदय-महाकाव्यम् [७१-७३ सजातया नवनवकण्टकिततया च निषिद्धा सती ईशस्य स्वामिनो दशौ चक्षुषी किमिति रया वेगेन मुद्रयतु, किन्तु नैव मुद्यतु । वक्रोक्तिरलंकारः ॥७॥ , __ सारसकेलिरापि. मिथुनेन नवीपुलिनदेशेषु च तेन । यवनभासु दिने सति कोकलोकः प्रापाप्यशोकमोकः ॥७१॥ सारसकेलिरित्यादि-तेन मिथुनेन सुलोचना-जयकुमारयोदयेन नदीनां पुलिनदेशेषु सारसयोः केलिरापि प्रसारिता यद्वा सा प्रसिद्धा रसस्य केलिरापि । दिने सति यवङ्गभासु यदीयशरीरकान्तिषु यद्वा यदङ्गभाभिः सुविने सति कोकलोकश्चक्रवाकयुगलमपि अशोकं शोकवजितमोक: स्थान प्राप किमु तावत् ॥७१॥ उच्चलदविरलकलकान्तिकले वनितायाः कोमले तनुतले। पातितमिति जलमपि नाज्ञासीज्जलकेलो निरतश्च विलासी ॥७२॥ उच्चलदित्यादि-उच्चलन् समुद्गर छंश्चासावविरलो बहुल: कलो मनोहर: कान्तेः कलः प्रवाहो यत्र तस्मिन् वनिताया भार्यायाः कोमले मृदुस्पर्श तनुतले पातितं जलमपि जलकेली निरतो विलासी नाज्ञासीदिति, यतः कान्तिमति शरीरे जलस्य विवेकाभावोऽभूत् ॥७२॥ ह्रोनताननाया अतिपीनस्तनतया नापि करो दीनः ।। अभिषेक्तुं तावदितः स्नात आनन्दाश्रुभिरीशो जातः ॥७३॥ होनतेत्यादि-ह्रिया नतमाननं यस्यास्तस्या अतिपोनस्तनतया यावद्दीनः करोडञ्चनने उसे मना कर दिया, इस स्थितिमें वह क्या पतिकी आँखें बन्द कर सकी थी, अर्थात् नहीं ॥७०॥ अर्थ-सुलोचना और जयकुमारके युगलने नदी तटके प्रदेशोंमें सारसकेलिसारस पक्षियोंकी क्रीड़ा प्राप्त की अथवा सा रसकेलि-वह प्रसिद्ध रसक्रीड़ा प्राप्त की, जिसमें कि उनके शरीरकी कान्तिसे उत्तम दिवसके रहते हुए चकवाचकवियोंने शोकरहित स्थान प्राप्त किया था। भावार्थ-उनके शरीरकी दीप्तिसे नदी तट पर दिन जैसा प्रकाश विद्यमान रहा, इसलिये चकवा-चकवी वियोगके भयसे दुःखी नहीं हुए।७१।। ___ अर्थ-जलक्रीड़ामें तल्लीन जयकुमार बढ़ती हुई कान्तिके सुन्दर प्रवाहसे युक्त सुलोचनाके शरीर तलपर उछाले हुए जलको नहीं जान सके थे। भावार्थ-जलक्रीड़ाके समय सुलोचनाके शरीर पर उछाला हुआ जल शरीरकी कान्तिमें छिप जाता था, अतः पृथक्से उसका बोध नहीं होता था ॥७२॥ अर्थ-लज्जासे नम्रमुखी सुलोचनाने भी जयकुमारको नहलानेके लिये-उन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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