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८५-८६ ]
एकविंशतितमः सर्गः
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अन्येत्यादि -- पुनः परः कश्चिदन्यस्य दर्शकतया जगौ यदहो भुवि पृथिव्यां भवान् जयकुमारः करो पृथिव्याः करग्रहणकरस्ततोऽसौ करी हस्तीति । तदुत्तरं पुनरेष साहसी जयकुमारः प्रत्युवाच यत्किल त्वं च करेऽणुतां किञ्चित्करतां यद्वा हस्तिनीभावं वाञ्छसि - तरामिति ॥८४॥
गोपतिर्जन तयासि भाषितोऽस्माकमाशु गुणवद्वृषस्त्वकम् ।
आह सोऽथ वदतीतरे जयः किन्न गोत्रिगुण एव भो भवान् ॥८५॥
गोपतिरित्यादिइ-अथ हे जयकुमारत्वकं जनतया गोपतिभूपोऽत एव बलीवर्द इति भाषितोऽसि तावदतोऽस्माकमप्याशु निस्संकोचं गुणवदृवृषो गुणयुक्तो धर्मयुक्तस्तथा रज्जूयुक्तो वृषभ एव इतीतरे ( इत्थमितरस्मिन्) वदति सति स जयकुमार आह— भो भवानपि गोत्रिगुणः किं नास्ति, अपि त्वस्येव गोत्रिणां कुलवतां गुणो लाभकर इत्यस्य स्थाने गवां पशूनां त्रिगुणः ॥ ८५ ॥
अस्मदत्र तु भवान्मृगनेत्रीं प्राप्य गच्छतु परम्परभावम् ।
प्राह सोऽपि गदतीत्यपरस्मिन्नास्मि किन्तु भवतः सुहृदेव ||८६ ॥ अस्मदित्यादिद- अत्र तु भवान् अस्मन्मृगने त्रीमेणाक्षीमित्यस्य स्थाने हरिणानां नायिकां प्राप्य परम्परभावं पुत्रपौत्रादिकुलवृद्विमस्य स्याने किलैणरूपतां गच्छतु किलेत्यपरस्मिन् गवति सति स जयकुमारः प्राह यत्किल पुनरपि भवतः सुहृदेवास्मि ॥ ८६ ॥
अर्थ- दूसरों के दर्शक रहते हुए किसीने कहा कि पृथिवी पर आप करीहाथी (पक्ष में कर वसूल करने वाले) सुने जाते हैं । साहसी जयकुमारने उत्तर दिया कि हाँ मैं करो हूँ और आप करेणुता - हस्तिनी के भावको प्राप्त होना चाहते हैं (पक्ष में कर वसूल करने में अणुता - अल्पताकी इच्छा करते हैं) ॥ ८४॥
अर्थ - किसीने कहा कि आप जनताके द्वारा गोपति- गायोंके पति ( पक्ष में पृथिवीपति) कहे जाते हैं, इसलिये हम लोगोंके लिये भी आप शीघ्र हो गुणवृष:- रस्सी सहित बैल हैं ( पक्ष में गुणसहित धर्म हैं) । इस प्रकार किसी अन्य के कहने पर जयकुमारने कहा कि अरे ! आप क्या गोत्रिगुण-बैलके तीन गुणोंसे सहित नहीं हैं, अर्थात् मैं तो एक ही गुणसे सहित हूँ, पर आप तीन गुणोंसे महित हैं ( पक्षमें गोत्री - कुलीन मनुष्योंके गणोंसे सहित हैं ।) ॥८५॥
अर्थ - यहाँ आप हमसे मृगनेत्री - मृगोंकी नायिका - हरिणी ( पक्ष में मृगनयनी - सुलोचना) को प्राप्त कर परम्परभाव - पुत्रपौत्रादिकी वृद्धिको प्राप्त होओ। इस प्रकार किमी अन्यके कहने पर जयकुमारने कहा कि फिर भी मैं आपका सुहृद् मित्र हूँ. अर्थात् आपने मृगनेत्री - मृगनयनी न देकर मृगनेत्री - हरिणी दी,
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