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________________ जयोदय- महाकाव्यम् [ ७१-७३ हृदयेत्यादि - साम्प्रतं वनिताजनः स्त्रीसमाजः स एकत एकपार्श्ववर्तीभूयाञ्चलकैरुत्तरीयवस्त्रत्रयेऽन्तरङ्गे स्थितो यः कामपावकः स्मरवह्निस्तमावृतं सुगुप्तमपि कलयन् जानन् वाततति वायुवृत्ति तनुते स्मेति मौग्ध्यम् ॥७०॥ ९९६ अतिवर्त्य नदीवनादिकं पुरमात्मीयमवापि सेनया । नरपस्य यथा यतिस्थितिर्लभते संसृतितः शिवं रयात् ||७१ || अतिवयेत्यादि- - यथा येन प्रकारेण यतिस्थितिर्मुन्याचारपालको जनो रयाद्वेगादचिरेणैव कालेनेति यावत्: संसृतितः चतुर्गतिरूपसंसारात् तमतीत्येति यावत्, शिवमपवगं लभते तथा नरपस्य जयकुमारस्य राज्ञः सेनया नदीवनादिकं विषमस्थलमतिवर्त्यः समुल्लङ्घ्य आत्मीयं स्वकीयं पुरं हस्तिनागपुरपत्तनमवापि प्राप्तम् ॥ ७१ ॥ समियाय स जाययादृतो नगरस्थापितमन्त्रिभिर्धनी । सहितः कुसुमश्रिया मधुः कुतुकोत्कं भ्रमरैरिवाध्वनि ॥ ७२ ॥ समियायेत्यादि - जायया सुलोचनया सहितः स धनी जयकुमारोऽध्वनि मार्गे, नगरे स्थापिता ये मन्त्रिणस्तैरागत्यादृत आदरभावं नीतः सन् कुसुमश्रिया पुष्पसम्पदा सहितो. मधुर्वसन्तः कुतुको कविनोदभरितैः पुष्पोत्कण्ठितैर्वा भ्रमरैः षट्पदेरादृत इव समियायाग्र गमनं चकार । उपमालंकारः ॥ ७२ ॥ नगरं प्रविवेश वैभवान्निजवृत्तं कियदेषु संवदन् । अथ कर्णपथं नयन्नयं स्वयमेभ्यो निजदेशवृत्तकम् ॥७३॥७ अर्थ - एक ओर स्थित स्त्रीसमूह हृदयमें स्थित कामाग्निको उत्तरीयः वस्त्रके अंचल से आवृत - सुगुप्त जानता हुआ इस समय अत्यधिक हवा कर रहा था । स्त्रियाँ भोलेपनसे यह नहीं समझ सकीं कि हवा करनेसे छिपी अग्नि प्रज्वलित ही होगी, न कि शान्त ॥७०॥ अर्थ - जिस प्रकार मुनियोंके आचारका पालन करने वाला मनुष्य शीघ्र ही संसारसे मोक्षको प्राप्तकर लेता है, उसी प्रकार राजांका सेनाने नदी, वन आदि विषम मार्गको उल्लंघनकर अपना नगर प्राप्तकर लिया ॥ ७१ ॥ अर्थ - जिस प्रकार फूलोंमें उत्कण्ठित भ्रमरोंसे आदर भावको प्राप्त हुआ वसन्त पुष्पलक्ष्मी के साथ वनमें प्रवेश करता है, उसी प्रकार नगरमें स्थापित मन्त्रियोंके द्वारा मार्ग में आदर भावको प्राप्त हुए राजा जयकुमारने सुलोचनाके साथ नगर में प्रवेश किया ॥७२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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