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९८८ जयोदय-महाकाव्यम्
[४७-५० यद्वा भूरिधान्यस्य हितकृद् यो गुणस्तेनाङ्किताम् युक्ताम् । तथा स दिक्षु सर्वासु दिशासु मानितामादरयोग्यां भूरियानेकप्रकारेणान्यस्यातिथे, हितकृद् यो गुणस्तेनाङ्किताम् । समासोक्तियुक्तवक्रोक्तिरलंकारः ॥४६।। हस्तिमौक्तिकफलादिकं मुदा भूपतेः शबरनायकास्तदा । दर्शनार्थमभितः समागताः लागुपायनमुपेत्य सन्नताः ॥४७॥
हस्तीत्यादि-तदा शबराणां म्लेच्छजातीयानां नायका हस्तिमौक्तिकफलादिकमुपायनं परितोषकारकं वस्तुजातमुपेत्य संगृह्याभितः सर्वाभ्यो दिशाभ्यो भूपतेर्दर्शनार्थमुपागताः स्राक् शीघ्रमेवमायाता मुदा प्रसन्नतया सन्नताश्च ॥४७॥ श्यामसुन्दरशरीरसम्पदोऽस्पष्टदृश्यमृदुरोममञ्जरीः कृष्णलारचितकण्ठभूषणाः संचलद्दलदुकूलमजुलाः ॥४८॥ मण्डनार्थमथ चैणनाभिकाश्चिन्वतीस्तनुतरावलग्नकाः । तत्र भिल्लतनया विलोकयेल्लोकराट् स मुमुवे वनस्थले ॥४९॥
इमामेत्यादि-तत्र वनस्थले स लोकराट् प्रजापतिर्जयकुमारो भिल्लानां तनयाः कन्या विलोकयन् मुमुदे मुदमवाप । कृष्णला गुजा, अवलग्नमेवावलग्नकं मध्यम्, एणस्य मृगस्य नाभिका कस्तूरीत्यर्थः । शेषं स्पष्टम् ॥४८-४९॥ मोदमाप महिषीमनोहरान् मातृसारखचितक्रियापरान् । स स्फुरद्धवलधाममण्डितान् वीक्ष्य गोपनिलयान् स्वसंहितान् ॥५०॥
धान्योंके हितकारी गुणोंसे सहित अथवा अनेक प्रकारसे अन्य मनुष्योंका हित करने वाले गुणोंसे युक्त उस भूमिको देखते हुए क्या प्रमोदको प्राप्त नहीं हुए थे ? अवश्य ही हुए थे ।।४६।।
अर्थ-उस समय म्लेच्छ राजा गजमोती आदि की भेंट लेकर सभी दिशाओंसे राजाके दर्शनके लिये आये और हर्षपूर्वक उपहार देकर नम्रीभूत हुएसभीने नमस्कार किया ॥४७|| ___ अर्थ-जिनकी शरीरसम्पदा श्याम होने पर भी सुन्दर थी, जिनकी कोमल रोमपंक्ति अस्पष्ट रूपसे दिख रही थी, जिनके कण्ठहार गुमचियों से निर्मित थे, जो हिलते हुए वल्कलोंके वस्त्रोंसे मनोहर थी, जो सजावटके लिये कस्तूरीको धारण कर रही थी तथा जिनकी कमर पतली थी, ऐसी भिल्ल-कन्याओंको देखते हुए राजा जयकुमार वनभूमिमें अत्यधिक प्रसन्न हुए थे ॥४८-४९।।
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