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९८४ नयोदय-महाकाव्यम्
[ ३८-३९ बन्धुपावनः समीचीनगन्धयुक्तो वायुरत्र नोऽस्माकं पथः परिश्रनं मार्गसंभूतखेदं खलु दूरत एव वै ससम्भ्रभमादरपूर्वकं हरति खलु वाक्यालङ्कारे ॥३७॥
श्रीधनःस्थितिमितः समुद्धरत् संगराश्रयतया वनं वरम् । हे सुकेशि दमनैः समन्वितं सैन्यवल्लसति विक्रमाङ्कितम् ॥३८॥
श्रीधनुरित्यादि-हे सुकेशि ! वरमेतद्वनमितः सैन्यवल्लसति भासते यतः संगरस्य शम्याः फलस्य पक्षे युद्धस्याश्रयतया श्रीधनुषः प्रियालस्य पक्षे चापस्य स्थिति दमनैर्नमपुष्पैस्तथा वीरैः समन्वितं समुद्ध रत् सद् विक्रमाङ्कितं वीनां पक्षिणां क्रमाङ्कितं साहससंयुतं च लसति । उपमालंकारः ॥३८॥ तन्वि ! बालतनयाञ्चिता हितादग्रतः सहचरी समाश्रिता । नेत्रभागकलिताञ्जना वनी राजते कुलबधूः किलाध्वनि ॥३९।।
तन्वीत्यादि-हे तन्वि ! हितात्प्रेमवशात् किलाग्रतः सहचर्या झिण्टया समाधिता स्वीकृता पक्षे सखीसहिता। बालस्य ह्रीबेरस्य तनयेन प्रसारण पक्षे बालश्चासौ तनयः सुतस्तेनाञ्चिता । नेत्रभागेन मूलेन कलितोऽजननामवृक्षो यस्यां तथा नेत्रभागे चक्षुः
अर्थ-हे प्रिये ! इस वनभूमिमें यह परम पवित्र सुगन्धित वायु दूरसे ही हम लोगोंके मार्गसम्बन्धी खेदको सचमुच आदरपूर्वक हर रही है ॥३७॥ __ अर्थ-हे सुकेशि ! यह वन इधर सेनाके समान सुशोभित हो रहा है, क्योंकि जिस प्रकार सेना धनुःस्थिति समुद्धरत्-धनुषकी स्थितिको धारण करती है, उसी प्रकार यह वन भी 'धनुःस्थिति समुद्धरत्-प्रियाल (अचार) वृक्षोंकी स्थितिको धारण करता है। जिस प्रकार सेना संगराधय-युद्धका आधार होती है, उसी प्रकार वन भी संगराधय-शमीफलका आधार है। जिस प्रकार सेना दमन-वीरभटोंसे सहित होती है, उसी तरह वन भी बमन-पुष्पोंसे सहित है और जिस प्रकार सेना विक्रमाङ्कित-पराक्रमसे सहित होती है, उसी प्रकार वन भी विक्रमाङ्कित-पक्षियोंके संचारसे सहित है ।।३८॥ ___ अर्थ हे तन्वि! मार्गमें आगे चलकर यह वनी कुलवधूके समान सुशोभित हो रही है, क्योंकि जिस प्रकार कुलवधू बालतनयान्विता-छोटे पुत्रसे सहित होतो है, उसी प्रकार वनी भी बालतनयान्विता-ह्रीबेरके विस्तारसे सहित है । जिस प्रकार कुलवधू प्रेमवश सहचरीसमाश्रिता-सखीसे सहित होती है, उसी प्रकार वनी भी सहचरीसमाश्रिता-झिण्टी नामक वृक्षसे सहित है और जिस प्रकार १. धनुः शरासने राशौ धनुर्धन्विपियालयोः। २. संगरं स्यात् फले शम्याः। ३. पुष्पे वीरेऽपि दमनः । सर्वत्र विश्वलोचनः ।
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