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२९-३०] एकविंशतितमः सर्गः
९७९ मुनीनां प्रियालागस्त्यादिवृक्षाणां पक्षे वाचंयमानां संघेन सेवितः। नव्यानां भव्यानां कर्मरङ्गतरूणां पक्षे मुमुक्षणां निवहः समूहरुपासितोऽपि दृश्यते । 'मुनिर्वाचंयमे बुद्ध प्रियालागस्यकिंशुके', 'कर्मरङ्गतरौ भव्यः' इति च विश्वलोचने । उपमालकारः ॥२८॥ विक्रमातिशयसंयुतो धनुर्बाणसंहतिसमन्वितः स्वयम् । गौरि ! सज्जकवचप्रसाधनः प्रौढशूर इव राजतेऽप्ययम् ॥२९।।
विक्रमेत्यादि-हे गौरि ! अप्ययं प्रौढशूर इव राजते। यतोऽसौ स्वयं वीनां पक्षिणां क्रमस्य परिपाटयाः, पक्षे विक्रमस्य सहजपराक्रमस्यातिशयेन संयुतः । धनुषां प्रियालानां बाणानां च वृक्षाणां, पक्षे धनुषां चापानां शराणां संहत्या गणेन समन्वितो युक्तः । सज्जानां सुन्दराणां कवचानां हरीतकोवृक्षाणां, पक्षे वर्मणां प्रसाधनं स इत्येवमुपमालंकारः॥२९॥
कर्णपूरपरिणामसंयतः श्रोणिबद्धसरसा समन्वितः । सर्वतश्च सकटाक्षदर्शन: कामिनीजन इवानुमानितः ॥३०॥
आदि वृक्षोंसे सुशोभित है। जिस प्रकार जिनेन्द्रदेव मुनिसंघसेवित-मुनियोंके समूहसे सेवित हैं, उसी प्रकार वनप्रदेश भी मुनिसंघसेवित-प्रियाल तथा अगस्त्य आदि वृक्षोंके समूहसे सेवित हैं। जिस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् नव्यभव्यनिवह-नवीन नवदीक्षत भव्य जीवोंके समूहसे सेवित हैं, उसी प्रकार वनप्रदेश नव्यभव्यनिवह-कर्मरङ्ग वृक्षोंसे सेवित-सहित है और जिस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् इष्टिमान् (यजनमिष्टिस्तद्वान्) पूजासे सहित हैं, उसी प्रकार वनप्रदेश भी इष्टिमान्-(एषणमिष्टिस्तद्वान्) इच्छा-अभिरुचिसे सहित है, अर्थात् दर्शकोंकी सुरुचिको बढ़ानेवाला है ॥२८॥
अर्थ-हे गौरि ! यह वनप्रदेश सहज ही प्रौढ शूरवीरके समान सुशोभित हो रहा है, क्योंकि जिस प्रकार प्रौढ शवीर विक्रमातिशयसंयुत-पराक्रमके आधिक्यसे सहित होता है, उसी प्रकार यह वनप्रदेश भी विक्रमातिशयसंयुतपक्षियोंकी परिपाटीसे सहित है। जिस प्रकार प्रौढ शूरवीर धनुणिसंहतिसम'न्वित-धनुष और बाणोंके समूहसे सहित होता है, उसी प्रकार वनप्रदेश भी धनुर्बाण संहतिसमन्वित-प्रियाल और कटसरैयाके समूहसे सहित है और जिस प्रकार प्रौढ शूरवीर सज्जकवेचप्रसाधन-सुसज्जित कवच-बख्तरको धारण करनेवाला होता है, उसी प्रकार वनप्रदेश भी सज्जकवचप्रसाधन-सुन्दर १. 'कवचो वारबाणे स्यात्पटहे गर्दभाण्डके' इति विश्व० ।
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