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[ २३-२४
आगतोपकृतये विचारिभिर्जन्मनश्च सफलत्वकारिभिः । शाखिभिः स सुखमाप तत्त्वतः श्रीजयो मृदुलपल्लवत्वतः ||२३|| आगतेत्यादि -- --अथ स श्रीजयो नाम राजाऽऽगतस्यातिथेरुपकृतये विचारिभिः पक्षिप्रचारयुतैराचारधारिभिर्वा मृदुपल्लवत्वतः कोमलपत्रयुतत्वतो मृदुभाषित्वतश्च जन्मनः सफलकारिभिः शाखिभिर्वृक्षः सम्बन्धिजनैर्वा तत्त्वतः सद्भावतः सुखमाप प्राप्तवानिति समासोक्तिः ॥ २३॥
जयोदय-महाकाव्यम्
स्यन्दनैरपि हरिद्भिरङ्कितं धन्विभिर्यदुत खड्गिभिमतम् । कक्षमात्मपरिणामवत्सलं दारुणोदितमवाप सद्बलम् ||२४|
स्यन्दनैरित्यादि — सती जयकुमारस्य बलं सैन्यं तदात्मपरिणामेन तुल्यभावेन वत्सलं प्रियं कक्षं वनमवाप, यतः कक्षमपि स्यन्दनैस्तिनिशवृक्षैर्बलं स्यन्दनैः कक्षं स्यन्दनैः रथैः कक्षं हरिद्भिस्तृणैः बलं हरिद्भिरश्वैः, कक्षं वन्विभिरर्जुनवृक्षं बलं धनुर्धारिभिः अङ्कितं सहितं कक्षं खड्गिभिः 'गैंडा ' इति प्रसिद्धवन्यप्राणिभिः, बलं खड्गिभिः कृपाणधारिभिः मिर्त प्राप्तं युक्तमिति यावत् । किञ्च, कक्षं दारुणा काष्ठैरुचितं परिपूर्णम्, जातित्वादेकवचनम्, बलं दारुणे कठिन कार्ये उचितमभ्यस्तमित्युपमा ॥ २४ ॥
अर्थ - श्री राजा जयकुमारने अभ्यागत- अतिथिके उपकारके लिये तत्पर, विचारिभिः-पक्षियोंके संचारसे युक्त तथा जन्मको सफल - फलसहित करने वाले शाखिभिः - वृक्षोंके द्वारा उनके मृदुपल्लवत्वतः - कोमल पत्तोंसे युक्त होनेके कारण सचमुच ही सुख प्राप्त किया था, अर्थात् मार्ग में आनेवाले हरे भरे फले-फूले छायादार वृक्षोंसे जयकुमारने हर्षका अनुभव किया था ।
अर्थान्तर - अतिथि सरकारका अभिप्राय रखने वाले एवं जन्मकी सार्थकता करने वाले शाखिभिः- सम्बन्धी जनोंसे राजा जयकुमारने उनके कोमल वार्तालाप - के कारण वास्तविक सुखको प्राप्त किया था । भाव यह है कि सदा परोपकारमें तत्पर रहने वाले सहभागी सम्बन्धियों के मधुर वार्तालापसे जयकुमारने सुखका अनुभव किया था ||२३||
अर्थ - जयकुमारकी सेना जिस वनको प्राप्त हुई थी, वह अपनी समानताके कारण उसे बहुत प्रिय था। दोनोंमें समानता इस प्रकार है- वन स्यन्दनतिनिश वृक्षोंसे सहित था और सेना स्यन्दन - रथोंसे सहित थी । वह हरित् - तृणोंसे सहित था और सेना हरित् - घोड़ोंसे सहित थी । वन धन्वि-अर्जुन (कीहा) के वृक्षोंसे सहित था और सेना धन्वि - धनुर्धारियोंसे सहित थी । वन - गेंड़ा हाथियोंसे सहित था और सेना खड्गि - कृपाणधारी सैनिकोंसे सहित
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