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________________ २०-२२ ] एक आप नवयोदरश्रिया शोभनाममलनाभिचक्रया | गन्तुमेव सुखतो रथस्थितिमात्मवानविधुरां वधूमिति ॥ २० ॥ एकविंशतितमः सर्गः एक इत्यादि -- एक: कश्चिदात्मवान् विचारचतुरः सुखतो गन्तुमेव वधूमिति रथस्थितिमाप । यतोऽमला निर्दोषा नाभिश्चक्रमध्यवृत्तिर्येषां तानि चक्राणि यस्यास्तथा अमलं नाभिचक्र' तुण्डमण्डलं यत्र तया नवया नवीनया, उवितिसमुदितानामराणां श्रीर्यस्याः, तथोदरस्य श्रिया शोभनां तथाऽविधुरां धुराया दोषेण रहितां पक्षे सौभाग्यवतीमिति किलोपमालङ्कारः ॥२०॥ ९७५ सादिनो नहि वधर्ववीयसे यावदासनकमध्वविप्रुषे । व्युत्थिता द्रुतमसा रंहसरचेलुराशु करभाः सहस्रशः ||२१|| सादिन इति-साबिन आरोहणकारिणो जना दवीयसे सुदीर्घायाध्वविपुषे मार्गलेशाय यावदासनकमपि नहि दघुस्तावदेवासह्यरंहसः समधिकवेगशालिनः सहस्रशो बहुसंख्याकाः करभा उष्ट्रा द्रुतमेव व्युत्थिताः सन्त आशु चेलुरभिजग्मुः ॥२१॥ चापलात् समुवधू लयन् दिशः सैन्धवास्तु चरणैः सदा स्तुताः । भद्रभाववशतः स्म कारणात् स्नापयन्ति मदनिर्झरैस्तु ताः ॥२२॥ चापलादित्यादिद-तवा चरणेः स्तुताः प्रशंसनीया अपि संन्धवाहयास्ते तु चापलाचपलतावशात् किल विशः समुदधूलयन्, किन्तु वारणा गजास्ते भद्रभाववशत एव किल ता मदनिर्झरैः स्नपयन्ति स्म । स्नापयन्ति, स्नपयन्तीति द्विविधाः प्रयोगा दृश्यन्ते ॥ २२ ॥ पलान पर रख उछल कर सवारी की ॥ १९ ॥ अर्थ — कोई एक कुशल सुभट सुखसे गमन करनेके लिये स्त्रोके समान रथकी सवारीको प्राप्त हुआ । यहाँ रथस्थिति और स्त्रीका श्लिष्ट विशेषणोंसे सादृश्य प्रकट किया गया है । स्त्री निर्मल नाभिमण्डलसे युक्त नवीन उदरश्री - पेटकी शोभा सहित थी और रथस्थिति निर्मल छिद्र वाले पहियोंसे युक्त नवीन अरों-चक्रदण्डों की शोभा से सहित थी । स्त्री अविधुरा - सौभाग्यवती थी और रथस्थिति धुराके दोषसे रहित थी ||२०|| अर्थ – सवार होने वाले लोग जब तक दूरवर्ती पड़ावके लिये आसन नहीं दे पाये कि शीघ्रगामी हजारों ऊँट उठकर शीघ्र ही चलने लगे ॥२१॥ Jain Education International अर्थ - उस समय चरणोंसे प्रशंसनीय घोड़े चपलतावश दिशाओंको धूलि युक्त कर रहे थे और हाथी भद्रभाव- सज्जनताके वश उन्हें मदके निर्झरनोंसे नहला रहे थे ||२२|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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