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जयोदय-महाकाव्यम्
[ ७९-८०
यशसेत्यादि - श्रुतिर्नाम शास्त्रप्रणीतिः, सा यासां यशसा साक्षरा तत्र देवतानां यशोगानसद्भावात् । यद्वा श्रुतिरस्मदादेः कर्णशष्कुली यासां यशसा साक्षरा कर्णपुटेन देवतानां यशः श्रुतमस्ति ततश्च साक्षला पाशकवती । अद्य पुनः सुभासावलोकनेन वृक् दृष्टिरसौ दीव्यति तासामेव देवतानां दर्शनात् दीव्यभावमाप्नोति द्यूतक्रीडां पाशक्षेपणक्रियां करोति । प्रणश्चापर एव कृतज्ञतालक्षणो जयति । इत्येवं सकाशात्पवित्रा पाशकला सापाशस्य कला क्रिया किन्नु ? ॥७७॥
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सुरोचिता नाम समस्ति यत्क्रिया घरातरेऽस्मिन् समभावि मत्प्रिया । त्वया मरुत्संविदिते प्रमाणिता विमानिनीयं न च मानवीक्षिता ॥७९॥ सुरोचितेत्यादि - -यस्याः क्रिया चेष्टा नाम सुरोचिता देवानां योग्यात एव सुष्ठुरोचिता सुरोचिता रमणीया च समस्ति, यास्मिन् धरातरे मरुद्भिर्देवैरुत समीरणः संविदिते यद्वा मरुदिति संविदिते संज्ञाते त्वया प्रमाणीकृता सम्मानितेयं विमानिनी मानरहिता देवतैवास्ति न च पुनर्मानेन वीक्षिता वृथा गर्विणी । यद्वा मानवी मनुष्यिणी नेक्षिता न दृष्टा । इयमपि देवतैव नास्याश्चेष्टितं मानवतुल्यं किन्तु परमं श्लाघनीयम् ॥७९॥ यदस्ति भक्ताय समक्षताप्तिस्तव स्तवः स्वर्गणि ! सूपकारः । व्यधायि अस्माभि रहो ललामाशुभक्षणायाञ्जलिरेव सारः ॥८०॥
यदस्तीत्यादि - हे स्वगिणि ! देवते ! यद् यस्मात् कारणाद् भक्ताय नाम सेवकायास्मादृशाय समक्षतायाः साक्षात्कारिताया आप्तिः समुपलब्धिर्यत्र सोऽसौ तव स्तवः
अर्थ — श्रुति-शास्त्रोंकी रचना जिनके यशसे साक्षर हैं, सार्थकताको प्राप्त हैं अथवा हम लोगों के कान जिनके यशः श्रवणसे साक्षर हैं, अथवा साक्षल-पासेसे हित हैं। आज आपके दर्शनसे हमारी दृष्टि क्रीड़ाको प्राप्त हो रही है, अथ च द्यूतक्रीड़ा पासा फेंकने की क्रीड़ा कर रही है और आपका प्रण जीवरक्षा रूप जसवंत है, अतः आपका दर्शन क्या पवित्र पाशकला - द्यूतकीड़ा है ? ॥७८॥
अर्थ - जिसकी क्रिया सुरोचिता - देवोंके योग्य अथवा सु-रोचिता - अत्यन्त मनोहर है, ऐसो मेरी यह प्रिया - सुलोचना मरुत्संविदित- देवोंके द्वारा ज्ञात अथवा प्रशस्त वायुसे प्रसिद्ध इस धरातल पर आपके द्वारा प्रमाणित - अत्यन्त सम्मानित हुई है, अतः विमानिनी - विमानवती देवी है, मानवी - मनुष्यिणीरूपसे नहीं देखी गई है, अथवा विमानिनी - मानरहित होकर भी मानवीक्षिता- मानसे देखी गई है, यह विरोध है । परिहार ऊपर किया जा चुका है ॥७९॥
अर्थ - अहो देवते ! जिस कारण मुझ जैसे भक्त के लिये साक्षात्कारको प्राप्ति रूप आपका प्रसङ्ग प्राप्त हुआ, यह एक बड़ा उपकार है । इसीलिये हमने
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