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________________ ४७-४८ ] विशतितमः सर्गः षिक्तां स्नातामत एव सङ्गयोग्यां श्रीमती तां तरङ्गिणी गङ्गामुत श्रीमत्तं रङ्गं सङ्गमस्थानं यस्या अस्तीति तां श्रीमत्तरङ्गिणीमाययो प्राप्तवान् ॥४६॥ मत्तेभवत्यथैतस्मिन्नापगा सारसाधिका । मध्यं स्पृशति कल्लोलैः समभूत्परिवारिता ॥४७॥ मत्तेत्यादि-सा रसाधिका प्रभूतजलवती किं वा सारसपक्षिभिरधिका शोभनीया आपगा नाम नदी मत्त भवति उन्मत्तहस्तिरामधिरूढे एतस्मिन् जयकुमारे मध्यं स्पृशति जलस्यान्तरागच्छति सति कल्लोलेस्तरङ्गैः परिवारिता समभूत् उज्जलावस्थां गतेति तथा चैतस्मिन् मत्त संसर्गाय तत्परे भवति सति सा काव्यापगा नाम स्त्री रसाधिका जाताभिलाषवत्तया सङ्गमयोग्याभूत् । ततः पुनर्मध्यं नाम शरीरप्रदेशं तं प्रसिद्ध स्पृशति सति तु सा कल्लोलरानन्दरनिर्वचनीयैः परि समन्तात् वारिता जलसमूहो यस्यास्तादृशी जाता ॥४७॥ अन्तस्थया च तिमिलक्षणयोवजन्ती वृत्त्यात्तया तिरयितुं समभूत् स्रवन्तो । पद्मश्वरं च करिवाहनमेवमेनं ___ सन्ध्येव साम्प्रतिकबुबुदभावनेन ॥४८|| अन्तस्थयेत्यादि-सा स्त्र वन्ती नदी सन्ध्येव दिनावसानवत् समभूत् । एनं जयकुमार स्नान करते हैं और जो सङ्गमके योग्य रङ्गभूमिसे सहित है। समासोक्तिसे कविने एक यह अर्थ भी प्रकट किया है कि जिस प्रकार कोई पुरुष अपनी प्रसवोन्मुख स्त्रीसे निवृत्त हो तीर्थमें कृतस्नान और श्रीमत्त-लक्ष्मीसे मत्त, अर्थात् उपभोग सामग्रीसे युक्त रङ्ग-क्रीडाभूमिसे सहित स्वकीय अन्य स्त्रीके पास जाता है, उस प्रकार जयकुमार राज्यसंसद्से निवृत्त होकर श्रीमत्तरङ्गिणीके पास आये ॥४६|| ____ अर्थ-मत्त हाथीपर सवार जयकुमारने ज्यों ही उस नदीके मध्यभागका स्पर्श किया, अर्थात् जलके भीतर प्रवेश किया, त्योंही रसाधिका-अधिक जल वाली अथवा सारसाधिका-सारस पक्षियोंसे सुशोभित वह नदी कल्लोलों-लहरोंसे घिर गयी। ___ अर्थान्तर-एतस्मिन् मत्ते भवति-संभोगके लिये आतुर जयकुमारने जब आपगा नामक स्त्रीके मध्य-कटिप्रदेशका स्पर्श किया, तब वह रमाधिका-संभोग सम्बन्धी इच्छासे परिपूर्ण हो कल्लोलों-अनिर्वचनीय उमंगोंसे घिर गई ।। ४७।। अर्थ-उस समय वह नदी, करिवाहन-हाथीपर सवार पद्मेश्वर-सुलोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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