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मार्ग अपनाया गया है। कविके व्यक्तित्वको उन्मिषित करनेवाली अकल्प्य कल्पनाशक्तिका काव्यशोभाधायनमें विशेष योग रहता है। चन्द्रमा पृथिवीसे कितनी दूरपर अवस्थित है, उसका क्षेत्रफल क्या है, वह किससे प्रकाश पाता है इत्यादि तथ्य प्रकाशित करना ज्योतिर्विज्ञानकी मौनान्तपरिणति है । वैज्ञानिकोंका वही शुष्क चन्द्रमा कविके कल्पनारम्य जगत्में साहित्यसंसारका शृङ्गार संयोगियोंका सुधासार, वियोगियोंका विषागार, उपमाओंका भण्डार तथा उत्प्रेक्षाओंका आसार बन जाता है।
जयोदयमहाकाव्यकारने प्रकृतिका सूक्ष्म निरीक्षण किया है। जब कविका प्रकृतिके साथ तादात्म्य-स्थापन होता है, तभी वह प्राकृतिक वर्णन-दक्षता प्राप्त कर सकता है। कवि प्रकृतिका कुशल चितेरा माना जाता है । पन्द्रहवें सर्गमें कविने सूर्यास्तमनवेलाका प्रभावशाली वर्णन किया है । सूर्य पश्चिम दिशामें पहुँचा, तो कमलिनी अपनी सपत्नीके सौभाग्यको देखकर ईर्ष्यासे सिकुड़ गई। उत्प्रेक्षा द्वारा प्रणीत इस कल्पना का आस्वाद लें
सरोजिनी कुड्मलितां दिशायाः समीक्ष्य साश्चर्यमिति स्मितायाः। मन्ये प्रतीच्या अधुनावभातितमामुदात्ताधरबिम्बकान्तिः ॥१५,५।
सूर्य अपनी प्रेमिका कमलिनीको छोड़कर पश्चिम दिशा रूपी नायिकाके पास चला गया। इस अनादरके कारण कमलिनी संकुचित हो गई । उसकी इस दुर्दशाको देखकर पश्चिम दिशाने आश्चर्य प्रकट किया तथा अपने सौभाग्यकी वृद्धिपर गर्व कर अपने अधरोष्ठबिम्बकी प्रभाको छिटकाया था । एक स्त्री पति के आगमनपर स्वयंको सौभाग्यशालिनी मानती हुई सपत्नीको चिढ़ाने हेतु ऐसी ही चेष्टाएं किया करती है।
जिस प्रकार प्रवाससे पतिके आनेपर बुद्धिमती स्त्री पहले कुशल समाचार पूछकर उसका आतिथ्य करती है, तदनन्तर प्रसन्नताके साथ सौभाग्यसूचक लाल साड़ी पहनती है, उसी प्रकार पश्चिम दिशा रूपी स्त्रीने सूर्य रूपी वल्लभ के आनेपर पहले पक्षियोंके मधुर कलरवसे उसका स्वागत किया। पश्चात् लालिमाके छलसे सौभाग्यसूचक लाल साड़ो पहन ली
उपागतेऽहस्कृति तस्य वीनां कलैः कृतातिथ्यकथाप्यशीना। श्रीशोणिमच्छद्ममयं प्रतीची दधाति सच्छाटकमात्तवीचिः ॥१५,६॥
१६वें श्लोकमें कविने सूर्यको दिनश्रीका कुम्भ बनाया। मानो वह सन्तप्त पृथिवीको शीतल करनेके लिए घड़ा लेकर पश्चिम समुद्रसे जल भरने जा रही हो
धराभितप्तेति विदां निधाय समेति तस्या अभिषेचनाय । समात्तसप्ताश्वकशातकुम्भकुम्भान्तिमाम्भोधिमियं दिनश्रीः ।
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