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________________ ८३-८५ ] एकोनविंश: सर्ग: णमो वड्ढमाणाणं च सम्मानसुखदं तु नः । णमो लोए सव्व सिद्धायदणाणमिदं पुनः || ८३ ॥ णमो भयवदो महति महावीर वड्ढमाणबुद्धिरिसीणमित्येवं गणधरवलयं किल ॥ ८४ ॥ टीका - एते श्लोका नाति क्लिष्टा अतो नैव व्याख्याताः ॥ श्रीगणभृद्वलयं सतां हितं भक्तामरसमयेन सेवितम् । कोविदग्रणीः को न पूजयेत् स्वस्य परस्य तथापदां जयेत् ॥ ८५ ॥ श्रीगणभृदित्यादि - श्रीगणभृतां वलयमीदृशं सतां सुजनानां हितं मङ्गलकरं तत एव पुनर्भक्तानां भक्तिपरायणानां च तेषाममराणां देवानां समयेन समूहेन यद्वा समागमे Jain Education International ९२३ अर्थ - मोवचबलीणं-वचनबल ऋद्धिके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद बकरा-बकरियोंकी अपमृत्युको नष्ट करनेवाला है । णमो कायबलीर्णकायबल ऋद्धिके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र गायों तथा बैलोंके रोगको नष्ट करनेवाला है || ७९ || णमो खीरसर्वाणं-क्षीरस्रावी ऋद्धियोंके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद गण्डमाल - कण्ठमाल आदि रोगोंको नष्ट करनेवाला है । णमो सप्पिसवीणं घृतस्रावी मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र हिक्का - हिचकी आदि रोगोंको नष्ट करनेवाला है ||८०|| णमो महरसवीणंमधुस्रावी ऋद्धिसे युक्त मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र समस्त मानसिक और शारीरिक पीड़ाओंको नष्ट करने वाला है । णमो अमियसवीणं - अमृतस्रावी ऋद्धि धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह पद समस्त आपत्तियोंका निराकरण करनेवाला है ||८१|| णमो अक्खोणमहाणसाणं - अक्षीण महानस ऋद्धिके धारक मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र लक्ष्मीका आकर्षण करनेके लिये प्रयुक्त करने योग्य है ॥ ८२ ॥ णमो वड्ढमाणाणं- वर्धमान स्वामी अथवा निरन्तर वर्धमान चारित्रको धारण करने वाले मुनियोंको नमस्कार हो, यह मन्त्र संमान तथा सुखको देनेवाला है । णमो लोए सव्वसिद्धायदणाणं - समस्त सिद्धायतनों - जिन मन्दिरों को नमस्कार हो, यह मन्त्र सब जगह सम्मान प्राप्त कराने वाला है ॥ ८३॥ णमो भगवदो महति महावीर-वड्ढमाण बुद्धिरिसीणम्- महति, महावीर और वर्धमान नामके धारक तथा बुद्धि ऋद्धि से सहित भगवान् महावीर स्वामीको नमस्कार हो, यह मन्त्र विद्या तथा बुद्धिका वर्धक है' ॥ ८४ ॥ अर्थ-सत्पुरुषोंके लिये हितकारी तथा भक्त देवोंके समूहसे सेवित अथवा ६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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