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एकोनविंशः सर्गः श्रीमाननुच्छिष्टभुजामिवायः पूर्व प्रहाणामधिपोदयाद्यः। षरां समारब्धमथ प्रबुद्धस्तदीयसंपर्क इतोऽस्त्वशुद्धः ॥१॥
श्रीमानित्यादि-अथ बन्दीजनकृतप्रभातस्तवानन्तरं यः श्रीमान् जयकुमारः स प्रहाणामषिपस्य सूर्यस्योदयात् पूर्वमेव परां पृथ्वी प्रियामिव समारन्धु सम्भोक्तुमिव प्रबुद्धो जातोऽभूत् । यतः सोऽनुच्छिष्टभुजामनन्यभुक्तभोजिनामावः प्रथमगणनीयस्तत्र च तस्य सूर्यस्यासो तबीयो यः सम्पर्कः करस्पर्शलक्षणः स इतोऽनन्तरमस्तु भवतु खलु । कथमिति चेत् ? सोशखः परस्त्रियाः परपुरुषकरेण स्पर्शो वर्जनीय इति हेतोः। ब्राह्म मुहूर्त उत्थाय' इत्याविसूक्तमाश्रित्य सूर्योदयात् पूर्वमुत्थानं सदाचारः। सः एवोक्त्यन्तरेणोक्त इत्यत्र ॥१॥
समामिलद्धस्ततलवयेन लेखाकृतार्धेन्दुसमन्वयेन । समीक्षिता पाण्डुशिला जयेन तीर्थेशजन्माभिषवात्र तेन ॥२॥ समामिलदित्यादि-अत्राभ्युत्थानकाले सर्वप्रथममेव तेन जयेन नाम राज्ञा समामिलत्परस्परं समतलतया संयोगं गच्छवस्ततलयोदयं तेन, तस्य लेखाभ्यामगुलिकाभ्योऽधःस्थिताभ्यां कृतो योऽर्धन्तुसमन्वयोऽर्धचन्द्रस्याकारो यत्र तेन संस्मारकनिमित्तेन
अर्थ-श्रीमान् जयकुमार अनुच्छिष्ट भोजियोंमें प्रथम गणनीय थे, अतः वे पृथिवीका उपभोग करनेके लिये सूर्योदयसे पूर्व ही जाग गये, क्योंकि इनसे पहले सूर्यके कर-हाथों ( पक्षमें किरणों ) का पृथिवीसे स्पर्श होना अशुद्ध था, वह पश्चात् ही हो। __भावार्थ-जिस प्रकार उत्तम पुरुष उसी स्त्रीको स्वीकृत करते हैं, जिसका परपुरुषके हाथोंसे स्पर्श नहीं हुआ हो। जयकुमारने भी यही विचार किया कि मैं जिस पृथिवी रूपी प्रियाका उपभोग करना चाहता हूँ वह सूर्यके कर स्पर्शसे मुक्त होकर उच्छिष्ट न हो जावे। इसीलिये वह सूर्योदयसे पहले ही जाग गया था। 'ब्राह्म मुहूर्तमें उठना चाहिये' इस सूक्तिके अनुसार सूर्योदयसे पहले उठना सदाचार है, इसी बातका आलङ्कारिक भाषा में कथन किया गया है ।।१।। ___ अर्थ-परस्पर मिली हुई दोनों हथेलियोंमें अंगुलियोंके नीचे जो अर्ध चन्द्रमाका आकार बन गया था, उससे राजा जयकुमारने उस पाण्डुकशिलाका
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