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अष्टादशः सर्गः
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केशास्तेषामुपसंग्रहो यस्याः सा रात्रिः । उत मृदुतमा अतिशयकोमला इत्येवं स्तुता । यद्वा मृदुना प्रशंसनीयेन तमेन तमसा स्तुताश्च ते ये कचाश्च तेषां मृदुलश्यामलकेशानामुपसंग्रहः समुच्चयनभावो यस्थास्सा सुरोचना रात्रौ रतिवृत्तादितया विकीर्ण भावमितानां केशानामिदानीमुपसंहारकर्त्रीति । मन्दस्पन्दिन्यस्तारका उडूनि यस्यास्सा रात्रिः, मन्दस्पन्दिनी तारका नयनकनीनिका यस्यास्सा सुरोचना समुपभूतनिद्रासद्भावेनेषदुन्मीलितनयनेति, संकुचन्ती संकोचमाश्रयन्ती रात्रिः संकुचन्ती सम्यक् कुचधारिणी सुलोचना, यद्वा लज्जानुभावेन च संकुचन्ती । क्षणमुत्सवं सुखलक्षणमानन्दं गृहस्थानां परेषां च विश्रामलक्षणं ददातीति क्षणा रात्रिः, सुलोचना चोत्सवदात्री सखीप्रभृतिभ्यः सुघटितव । तथैव सुरोचना सुरुचिकर्मीति सूक्तः सम्यगुक्तो विग्रहः शब्दव्युत्पत्तिर्यस्यास्सा रात्रि:, सूक्तः प्रशंसां प्राप्तो विग्रहः शरीरं यस्यास्सा सुरोचना शयनाशयाच्छ्यनस्थानादगान्निर्जगाम ॥९१॥
इलथीकृताश्लेषर से हृदीश्वरे विनिद्रनेत्रोदयमेति भास्करे । सखीजने द्वारमुपागतेऽप्यहो चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सती ॥९२॥ श्लथी कृतेत्यादि - हृदीश्वरे वल्लभे इलथीकृत आश्लेषस्य रसो येन यथाभूते सति,
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अर्थ - उस समय सुरोचना - सुलोचना ठोक रात्रिके समान जान पड़ती थी, क्योंकि जिस प्रकार सुलोचना मृदुतमस्तुतकेशोपसंग्रहा - अत्यन्त कोमल और प्रशंसनीय केशोंके उपसंग्रहसे सहित थी, उसी तरह रात्रि भी मृदुतमस्तुतकेशोपसंग्रहा- कोमल अन्धकार रूप केशोंके उपसंग्रहसे सहित थी । जिस प्रकार सुलोचना संकुचन्ती - समीचीन कुचोंसे सहित थी अथवा लज्जारूप अनुभावसे संकुचित- लज्जावती हो रही थी, उसी प्रकार रात्रि भी संकुचन्ती - क्षीणताको प्राप्त हो रही थी । जिस प्रकार सुलोचना सूक्तविग्रहा - प्रशंसित शरीर से सहित थी, उसी प्रकार रात्रि भी सूक्तविग्रहा अच्छी तरह कथित शब्दव्युत्पत्तिसे सहित थी । जिस प्रकार सुलोचना मन्दस्पन्दितारका - मन्द मन्द चलने वाली कनीनिकाओं सहित थी, उसी प्रकार रात्रि भी मन्दस्पन्दितारका - धीरे-धीरे लुप्त होनेवाली ताराओंसे सहित थी । जिस प्रकार सुलोचना क्षणदा - रतिरूप उत्सवको देनेवाली थी, उसी प्रकाह रात्रि भी क्षणदा-गृहस्थोंके लिये रतिरूप उत्सव और जनसाधारणके लिये विश्राम सुखको देनेवाली थी । सुलोचना जिस प्रकार सुलोचना-सुन्दर नेत्रोंवाली थी, उसी प्रकार रात्रि भी सुरोचना-कामरुचिको बढ़ाने वाली थी । इस तरह रात्रिकी समानताको धारण करने वाली सुलोचना शयनागारसे बाहर चली गई और सुलोचनाकी समानताको धारण करने वाली रात्रि भी शयनागार से बाहर चली गई- समाप्त हो गई ॥ ९१ ॥
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