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अष्टादशः सर्गः
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षणः श्रेष्ठ निर्णयो यत्र सा सुघटप्रणीतिः कुम्भव्यवस्था 'षकारस्तु मतः श्रेष्ठे णकारो ज्ञाननिर्णये' इति कोषसद्भावात् । सूत्रस्य प्रामाणिकन्यायसूक्तस्य पक्षे सूत्रस्य तूलतन्तुसमूहस्य प्रचालनं स्पष्टीकरणं तद्धावेनोचिता सम्भवप्राया दण्डनीतिः सामदामदण्डभेदा इत्येवं राज्यव्यवस्थाया स्तृतीयोक्तिरथवा दण्डस्य दधिमन्थस्य नीतियंत्र एतादृशी भवति, तथा सभावितेन क्रमेण हितं प्रजाकल्याणं यत्राथवा सम्भाविना भविष्यता तक्रण महिता सती मोः प्रशस्तस्य स्वराज्यपरिणामस्य समर्थिका, यद्वा मञ्जुस्वरा सुशब्दवती सती आज्यस्य घृतस्य परिणामसमर्थिका लसतु । अथ च हे महोद ! तेजःप्रद ! ते तव विषणा बुद्धिरेवंभूता भवतु । तथाहि मञ्जु मनोहरं यत् स्वराज्यं तस्य परिणामः साफल्यं तस्य सर्मार्थका । सम्यकप्रकारेण भावितेन समितिषु चिन्तितेन क्रमेण कायप्रणात्याऽऽहिता सहिता । सूत्रसंचालनं राज्यतन्त्रपरिचालनं तस्य भावस्तया उचिताऽभ्यस्ता योग्या वा दण्डनीतिर्यस्यां वा सुघटप्रतीतिः सुघटिता सुसंगता प्रतीतिर्यस्या तथाभूता ॥८२॥
परिणामका समर्थन करने वाली है, सम्भावितक्रमा-उत्तम क्रमसे सहित है, हिता-प्रजाका कल्याण करने वाली है, महोदधिषणासुघटप्रणीतिः-उत्सव अथवा तेजको देने वाली बुद्धिका जिसमें उत्तम प्रयोग किया गया है, तथा सूत्रप्रचालनतया-राज्यशासन चलानेके कारण जो उचित है।
अर्थान्तर-हे जयकुमार ! इस प्रभात वेलामें आपको वह सुघटप्रणोतिउत्तम कुम्भ व्यवस्था अच्छी तरह शोभायमान हो जो मञ्जुस्वरा-सुन्दर शब्द वाली है, अर्थात् मन्थनके समय जिसमें 'कलछल'का सुन्दर शब्द हो रहा है, जो आज्यपरिणामसमर्थिका-घृतरूप फलका समर्थन करने वाली है, सच्भावितक्रमहिता-तैयार होने वाली छाँछसे जो उत्तम है, सूत्रप्रचालनतयोचितदण्डनीतिसंलग्न सूत्र-रस्सीके संचालनसे जो योग्य मन्थन दण्डसे सहित है, अर्थात् संलग्न रस्सीके संचालनसे जिसमें मन्थन दण्ड-मथानी अच्छी तरह घूम रही है और जो महोदधिषणा-उत्सव अथवा तेजरूप दहीके ज्ञान और निर्णयसे युक्त है, अर्थात् जिसमें स्थित दहीका ठीक ठीक ज्ञान प्राप्त किया गया है । __ भावार्थ-भारतवर्ष में प्रातःकाल दही विलोनेका कार्य होता है, अतः आप उठकर इस व्यवस्था को संचालित करें। __ अथवा-से महोद ! हे तेज या प्रतापको देनेवाले! आपको ऐसी बुद्धि हो जो मनोहर गणतन्त्रकी सफलताका समर्थन करने वाली हो, जो असेम्बलीमें अच्छी तरह विचारित कार्यप्रणालीसे सहित हो, जो राज्यतन्त्रके संचालनकी दृष्टिसे उचित दण्डनीतिसे सहित हो और सुघटप्रतीति-सुसंगत प्रतीतिसे सहित हो-व्यवहार्य कार्योंको करने वाली हो ।।८२॥
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