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________________ ७१-७२ ] अष्टादशः सर्गः भागं सर्वत्र स्वशरीर एवोलुकं डलयोरभेदादुडुकं नाम नक्षत्रमेव करकोपलमाप्येवंविधप्रकारेण चित्वं सचेतनावस्थामिता गताधुना शैत्यनिवारणाय सिन्दूरपूररुचिरमरुणवर्णं सुचिरप्रभावं दीर्घकालं यावत्प्रभावकारकं कम्बलमेति प्राप्नोति तावत् ॥ ७० ॥ आशा सिता सुरभि तानव- कौतुकेन वा शासिता सुरभिता नवकौतुकेन । समुदर्कसारा पुण्याहवाचनपरा पुण्याहवाचनपरा समुदर्कसारा || ७१|| आगेत्यादि - आशाखिलापि विशा यद्वा लोकानां मनोवृत्तिस्सा सुरभीणां धेनूनां तानवं तनुसम्बन्धि यन्नवं कौतुकं विनोदस्तेन शासिता समाक्रान्ता सिता श्वेता जाता । नवकौतुकेन प्रफुल्लनवकमलकुसुमेन सुरभिता सौगन्ध्यमितास्ति । अर्कस्य सूर्यस्य सारः प्रसरणं समुद् हर्षसहितोऽर्कसारो यत्र सा समुदर्कसारा । अत एव पुण्याहस्य पवित्रदिवसस्य याचने कथने परा परायणा सती समुदर्कस्य भविष्यतः परिणामस्य सारो यत्र सोत्तरलोक सुधारणतत्परा, अत एव पुण्याहवाचने स्वस्तीत्यादिसमुच्चारणे तत्परास्ति ।। ७१ ॥ सम्मुद्रणं सह समेत्य समेन राज्ञा भास्वन्तमाप्य च मणि हसतीह भाग्यात् । Jain Education International ८६७ आमोदसम्भरभूदेष किलाब्जभूपः संपश्य शस्य मनुजेष्ववतंसरूप ॥७२॥ सम्मुद्रणमित्यादि - हे श स्यमनुजेषु सत्पुरुषेषु अवतंसरूप ! सच्छिरोमणे ! अयमन्जभूप एष कमल महीपालः समेन राज्ञा श्रीमता चन्द्रेणोत समकक्षकेण सह सम्मुद्रणं प्राप्त हुई थी, वह अब प्रातःकाल के समय मानों शीतकी बाधा दूर करनेके लिये दीर्घकाल तक प्रभाव रखने वाले लाल कम्बलको ओढ़ रही है ।। ७० ॥ अर्थ – समस्त दिशाएँ गायोंके शरीर सम्बन्धी विनोदसे व्याप्त हो सफेद हो गई है अथवा नवीन प्रफुल्ल कमल पुष्पोंसे व्याप्त हो सुरभित सुगन्धित हो रहे हैं, अथवा सूर्यके हर्ष पूर्ण संचारसे युक्त हो 'आज पवित्र दिन है' यह कहने में तत्पर हैं अथवा सुन्दर पारलौकिक भविष्य की श्रेष्ठतासे युक्त हो पुण्याह वाचन - स्वस्तिपाठके उच्चारणमें तत्पर हैं ।। ७१ ।। अर्थ - हे सज्जन शिरोमणे ! यह कमलरूप राजा श्रीमान् चन्द्रमारूपी राजा साथ संमुद्रण-संकोच अथवा हर्षं सहित युद्धको प्राप्त कर, अर्थात् रातभर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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