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जयोदय-महाकाव्यम्
[६२-६३
नो नक्तमस्ति न दिनं न तमः प्रकाशः
नैवाथ भानुभवनं न च भानुभासः । इत्यहतो नृप ! चतुर्थवचो विलास
___ सन्देशके सुसमये किल कल्यभासः ॥६२॥ नो नक्तमित्यादि-हे नप ! हे राजन् ! अर्हतश्चतुर्थवचः 'स्यादस्ति १ स्यान्नास्ति २ स्यादुभयं ३ स्यादवक्तव्यं ४ स्यादस्त्यवक्तव्यं ५ स्यान्नास्त्यवक्तव्यं ६ स्यादुभयं चावक्तव्यम् ७' एतेषु सप्तभङ्गेषु चतुर्थवचः स्यादवक्तव्यं नाम तस्य विलासश्चेष्टितं तत्सन्देशके कल्यभासः प्रभातस्य सुसमये किलाधुना नो नक्तं नैव दिनमप्यस्ति न च तमो नैव प्रकाशोऽपि नैव भानां नक्षत्राणामनुभवनं न च भानुभासः, किन्त्वस्फुटदृगेवेति ॥६२॥ प्राक् शैलमेत्य विचरत्ययमंशुमाली
त्थं तत्पवप्रचालितात्रजगैरिकाली। व्योम्नीक्ष्यते नरवराथ तदेकभागः
. संगत्य भो जलरुहामधुना परागः ॥६३॥ प्रागित्वादि-भो नरवर ! अयमंशुमालो सूर्यः प्राक्शेलं पूर्वपर्वतमेत्य गत्वा विचरति पर्यटनं करोति किलेत्थं तत्पदैस्तत्किरणैरेव चरणः प्रचलिता समुत्थितात्र
वातावरणको देख सज्जन पुरुष निर्वृतिपथ-निर्वाण मार्ग अथवा उपर्युक्त विवादोंसे दूर रहने वाले मार्गमें प्रवृत्त हो रहे हैं-तटस्थ बन रहे हैं ।।६१॥ ___अर्ष-हे नृप ! हे राजन् ! अहंन्त भगवान्के चतुर्थ वचनकी चेष्टाका संदेश देने वाले प्रातःकालीन दोप्तिके सुन्दर समयमें न रात है, न दिन है, न अन्धकार है, न प्रकाश है, न नक्षत्रोंका अनुभवन है और न सूर्यकी दीप्तियाँ हैं ॥६२॥
भावार्थ-जिनेन्द्र देवके द्वारा प्रतिपादित स्यादस्ति आदि सात वचनोंमें चतुर्थ वचन 'स्यादवक्तव्य' है, अर्थात् पदार्थ न अस्ति रूप है, न नास्ति रूप है, न अस्तिनास्ति रूप है, किन्तु अवक्तव्य है, क्योंकि एक ही साथ अस्ति-नास्ति ये दो विरोधी धर्म नहीं कहे जा सकते । इसी तरह इस प्रभात कालमें न तो रात है, न दिन है, न अन्धकार है, न प्रकाश है, न नक्षत्रोंका अनुभव-सद्भाव है और न सूर्यकी रश्मियाँ है, किन्तु प्रकाश और अन्धकारको एक अवक्तव्य दशा है ॥६२॥
हे नरश्रेष्ठ ! यह सूर्य पूर्वाचलपर पर्यटन करता है, घूमता है, यह बात प्रसिद्ध है । पर्यटनके समय सूर्यके पदों-चरणों (पक्ष में किरणों) से उस पर्वतपर
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