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________________ उनकी अनुपम कृति है । इसका प्रत्येक पर्व अनेक सर्गो में विभक्त है । बारहवीं शताब्दी के तीन अन्य काव्य एवं महाकाव्य उत्कृष्ट कोटिके हैं - १. जयसिंहसूरिप्रणीत कुमारभूपालचरितम्' २ मुनिरत्नसूरिकृत असमस्वामिचरितकाव्य ( २० सर्ग) तथा हरिचन्द्र विरचित धर्मशर्माभ्युदयमहाकाव्य ( १२५७ वि. सं.) । तेरहवीं शताब्दी में संस्कृत काव्यरचनाके क्षेत्रमें जैनकवियोंकी वृद्धि हुई । यद्यपि इस कालमें कई दर्जन काव्यों और महाकाव्योंकी रचना हुई, तथापि डेढ़ दर्जन कृतियाँ वस्तुतः उल्लेखनीय हैं। जिनपालगणिका सनत्कुमारचरितमहाकाव्य, महाकवि आशाधर कृत भरतेश्वराभ्युदय काव्य ( सिद्धयङ्कमहाकाव्य ) तथा देवप्रभसरि विरचित पाण्डवचरित इस शताब्दीके प्रारम्भकी श्लाघ्य कृतियाँ हैं । गुर्जरदेशीय विद्वान् भट्टारक वादिचन्द्रने पाण्डव पुराण काव्यकी १८ सर्गों में रचना की । इस श्रृंखला में उदयप्रभसूरिकृत धर्माभ्युदयमहाकाव्य उल्लेखनीय कृति है । काव्यप्रकाशके टीकाकार माणिक्यचन्द्र सूरिने पार्श्वनाथ चरितमहाकाव्य तथा शान्तिनाथचरितका प्रणयन किया। विजय चन्द्रसूरिने पार्श्वनाथ चरितमहाकाव्य रचा। इस प्रकार एक ही विषयवस्तु पर समकालीन दो महाकाव्यों का प्रणयन उल्लेखनीय कविकर्म है । वस्तुपालरचित नरनारायणनन्द काव्य, अभयदेवसूरि विभावित जयन्तविजय महाकाव्य, ठक्कुर अरिसिंहप्रणीत सुकृतसंकीर्तनम्, उदयप्रभसूरिकृत सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी, बालभारतके रचयिता अमरचन्द्रसूरिका चतुर्विंशतिजिनेन्द्रसंक्षिप्तचरितानि, विनयचन्द्र सूरिका मल्लिनाथचरित, चन्द्रतिलक उपाध्यायका अभयकुमारचरितकाव्य, माणिक्यदेव सूरिका सौ सर्गों में निबद्ध नलायन महाकाव्य, और बालचन्द्र सूरिका वसन्तविलास काव्य प्रशस्त कृतियोंके अन्तर्गत परिगणनीय हैं । चौदहवीं शताब्दी में विरचित पुण्डरीकचरितमहाकाव्य ( कमलप्रभसूरिकृत), श्रेणिकचरितमहाकाव्य अथवा दुर्गवृत्तिद्वयाश्रयमहाकाव्य ( जिनप्रभसूरिकृत), शान्तिनाथचरितमहाकाव्य ( मुनिभद्रसूरि ), पार्श्वनाथ चरितमहाकाव्य (भावदेवसूरि), हम्मीर महाकाव्य ( नयनचन्द्रसूरि ), वस्तुपालचरित ( जिन हर्षगणि) एवं हरिवंशपुराणमहाकाव्य ( राजस्थानी विद्वान् भट्टारक सकलकीर्ति तथा ब्रह्मजिनदास) कृतियाँ उल्लेखनीय हैं । अन्तिम कृति ४० सर्गों में निबद्ध है । १ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ६ में डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरीके अनुसार इस ग्रन्थका नाम 'कुमारपालभूपालचरित' एवं रचना काल पन्द्रहवीं शताब्दी है । - प्र० जैन साहित्यका बृहद् इतिहास (भाग ६) में डा० गुलाबचन्द चौधरीके अनुसार 'पाण्डवपुराण की रचना सं० १६५२ में नोषकनगर में हुई थी ।' - प्र० २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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