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________________ ८४८ जयोदय-महाकाव्यम् [ ४२-४३ प्रीतिभावेन वा वजितं यज्जीवनं निःस्नेहजीवनं तवावेन दशा वर्तिकाऽवस्था च संशोच्यतामुपगतास्ति ॥४१॥ रात्रावहो पुलकितानि हसन्ति भानि ___ स्माम्भोरुहाणि किल मुद्रणमाश्रितानि । वाबिन्दुभावमुपगम्य दलेषु तेषां भिक्षामटन्ति परितो दिवसप्रवेशात् ॥४२॥ रात्रावित्यादि-रात्री निशासमये यानि पुलकितानि प्रसन्नभावमितानि भानि नक्षत्राणि, मुद्रणं संकोचमाश्रितानि अम्भोरुहाणि जलजानि हसन्ति स्म हास्यं कुर्वन्ति स्म किल तान्येव पुनरधुना परितो दिवसप्रवेशाद् दिनोवयसद्भावात् कमलानां विकासावसरत्वात् तेषां वलेषु पत्रषु जातीयसमुदायेषु तद्गेहद्वारेषु वा वाबिन्दुभावं जलकणरूपतामुपगम्यातिशयलाघवमासाद्य भिक्षामटन्ति, इत्यही ॥४२॥ संसूयते तनयरत्नमपश्चिमातः संश्रयते कलकलो द्विजजातिजातः । पाथोहोवरवरावलिनो विमुक्ता आमोदपूर्णमखिलं जगवेतदुक्तात् ।।४३।। संसूयत इत्यादि-अपश्चिमातः सर्वप्रथमातः स्त्रिय इवेन्द्रविशातस्तनयरत्नं सूर्यनामसत्पुत्रः संसूयते समुत्पाबते, तत एव रिजानां पक्षिणां ब्राह्मणानां वा जातेः समूहाज्जातः कलकलस्वरः संभूयते। पायोल्होबरवरात् कमलकोषगहरादलिनः कारावासिन इव भ्रमपाच विमुक्तास्सन्ति । तथोक्तादेव कारणात् जगद्विश्वमखिलमप्येतदामोवेन सुगन्धेन और जिसकी प्रभा क्षीण हो रही है, ऐसे दीपककी दशा-बत्ती स्नेह-तैल रहित जीवन होनेसे शोचनीय अवस्थाको प्राप्त हो रही है ॥४१॥ ___ अर्थ-रात्रिके समय प्रसन्नताको प्राप्त हुए जो नक्षत्र निमीलित-दीनदशाको प्राप्त कमलोंकी हँसी उड़ा रहे थे, वे इस समय सब ओरसे दिनका प्रवेश होनेके कारण जल कणोंका रूप रख उन्हीं कमल दलोंपर (उनके द्वारपर) मानों भिक्षा मांग रहे हैं ।।४२॥ अर्थ-पूर्व दिशारूपी प्रथम पत्नीसे सूर्यरूपी पुत्ररत्न उत्पन्न हो रहा है, इसलिए द्विज-ब्राह्मण अथवा पक्षियोंके समूहसे उत्पन्न हुआ कल-कल शब्द सुनाई पड़ रहा है, कमलोंके उदरगर्त रूप बन्दीगृहसे भ्रमर रूपी बन्दी छोड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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