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________________ जयोदय-महाकाव्यम् [१९ ___ मन्दाग्नीत्यादि- इदानी हे महानुभाव ! ओषधिपती चन्द्रमसि तथैव भिषग्वरे दूरे प्रतियाति सति अस्तप्रायतां गच्छति असन्निकटदेशं गते च विननाथकान्ता नाम सूर्यकान्ता नाम मणि; सा मन्दाऽनधिकपरिणामाया अग्नेवह्न रुग् रुचिस्तयुगभवत् । अथ च दिननाथनामकमहाशस्यकान्ता स्त्री मन्दाग्निनामकरोगवती जाता। उपान्तादेव शार्वरं नाम तिमिरमिदं सन्दर्शितं श्वयथु स्थूलत्वमुत च शोथरोगो बा येन तदभवत् । अमूनि नेत्राणि पुनरप्यथ तिमिराख्यं दोषमधुः। अनवलोकनवशां तिमिरनामकरोगं वा प्रापुरिति । रेऽव्ययः खेवप्रदर्शने, अत एव नाशस्योप-समीपं गतो यो भावस्तस्मादुपान्ताद्वा ॥ १८॥ शीताङ्गतां विचलतः पवनस्य पश्य विस्फोटवत्त्वमधुना सलिलोद्भवस्य । संदृश्यतेऽवनितुजो विकृतः प्रलापः मूछौं कुमुदति उतेतितमामपाप ॥१९॥ शीताङ्गतामित्यादि-हे अपाप ! पुण्यात्मन् ! अधुना विचलतः पवनस्य शीताङ्गतां शीतलतां तथैव शीताङ्गनामरोगवत्तां पश्यावलोकय। सलिलोद्भवस्य कमलस्य विस्फोटवत्त्वं विकासभृत्वमुत विस्फोटकनामरोगवत्त्वं पश्य । अवनितुजोवृक्षस्य अर्थ-हे महानुभाव ! अब ओषधिपति-चन्द्रमा दूर चला गया है-अस्त होनेके सन्मुख है, सूर्यकान्तमणि तुच्छ अग्निके समान निष्प्रभ हो गया है और विस्तारको दिखाने वाला शर्वर-अन्धकार उपान्त-नाशके निकट है, फिर भी ये नेत्र तिमिर नामक दोषको धारण कर रहे हैं, अर्थात् निद्रामें निमग्न हो अनवलोकन दशाको धारण कर रहे हैं, कुछ देख नहीं रहे हैं। __ अर्थान्तर-ओषधिपति-श्रेष्ठ वैद्यराजके दूर चले जाने पर सूर्यकी कान्तास्त्री मन्दाग्नि रोगसे युक्त हो गई है, अन्धकारको शोथका रोग हो गया है और उससे वह नष्ट हो रहा है तथा ये नेत्र तिमिर नामक रोग-रतोंधीको धारण करने लगे हैं, यह खेदकी बात है ।। १८॥ अर्थ-हे पुण्यात्मन् ! इस समय चलने वाली वायुकी शीताङ्गताशीतलताको देखो (पक्षमें शीताङ्गनामक रोग विशेषको देखो), कमलकी विस्फोटता-विकसित अवस्थाको (पक्षमें विस्फोट नामक रोगको देखो), इधर वृक्षका विकृत-पक्षियोंके द्वारा किया हुआ प्रलाप-कलकल शब्द सुनाई दे रहा है, पक्षमें विकृत-दूषित प्रलाप-बकझक करने वाला रोग दिखाई दे रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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