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________________ ७८५ ८१-८२ ] षोडशः सर्गः लीलातामरसाहतोऽन्यवनितादष्टापरत्वाज्जनः सम्मिश्राब्जरजस्तयेव सहसा सम्मीलितालोचनः । वध्वाः पूतिकृतितत्परं मुकुलितं वक्त्रं पुनश्चुम्बतो निर्यातिस्म तदेव तस्य नितरां हर्षाश्रुभिः श्रीमतः ॥१॥ टीका-जनः प्रेमी पुरुषः सोऽन्यवनितया दष्ट आस्वादितोऽधरो यस्य तत्वात्, लीलातामरसेन केलिकमलेनाहितः प्रतारितस्सन् सम्मिमिलितमब्जस्य रजो यत्र ['तस्य भावस्तत्ता तया । इवोत्प्रेक्षायां सहसा सगिति सम्मीलितमालोचनमवलोकनं यस्य तथा भूतो जातः । नायकं निमीलितनेत्र दृष्ट्वा वधूनितरां खिन्ना बभूव । पूत्कृतौ रोदने तत्परं संमुखं मुकुलितं निःश्रीकं च तस्या बक्त्र मुखं पुनश्चुम्बतः श्रीमतः शोभासंपन्नस्य तस्य नायकस्य हर्षाश्रुभिः प्रमोदबाष्पस्तदेव रजो लीलातामरसपरागो नियतिस्म निःसरति स्म । नायकेन छलेन नायिकायाः कोप उपशमित इत्यर्थः] ॥८१॥ भूर्जप्रायकपोलके दललताव्याजेन बीजाक्षराः प्रान्ते कुण्डलसम्पदौ विलसतो युक्तौ ठकारौ तराम् । लोमालीति च नाभिकुण्डकलिता श्रीधूपधूमावली सज्जीयाज्जपमालिका गुणवतीयं हेमसूत्रावली ॥४२॥ टीका-पत्रावलीविभ्राजितं बध्वाः कपोलं दृष्ट्वा कविः कल्पना करोति-दललता को कीर्तिका लोप करने वाली थी ) और उनके विलास-हावभाव आदि पुराणपपाश्रिता न-प्रथमानुयोग सम्बन्धी पुराण ग्रन्थों में प्रतिपादित शिष्ट व्यवहार का आश्रय करने वाले नहीं थे ( पक्षमें प्राचीन व्यवहारके अनुकूल नहीं थे ) इस तरह उनका वह सुरत लक्षण समागम अनीति-नीतिसे रहित था ।। ८० ॥ भावार्थ-नायकके अधरोष्ठको अन्य स्त्रीके द्वारा डसा देख नायिकाने उसपर क्रीड़ा कमलसे प्रहार किया। नायकने झटसे नेत्र बन्द कर लिये मानों उस कमलकी पराग नेत्रोंमें चली गई हो । नायकको निमीलित नेत देख नायिका घबड़ा गई वह रोना ही चाहती थी कि नायकने उसके मुखका चुम्बन कर उसका क्रोध शान्त कर दिया। नायकके नेत्रोंसे हर्षके आँसू निकल पड़े मानों उन आँसुओंके द्वारा वह कमलको पराग बाहर निकलगई हो ॥८१॥ अर्थ-नायिकाके कपोलोंपर जो पत्रोपलक्षित लताका आकार बना हुआ १. इतोऽग्रे टीकाभागस्त्रुटितः प्रकरणदृष्टया संपादकेन योजितः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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