________________
७४1 षोडशः सर्गः
७८९ सखि ! शस्तः सखिवत्पतिरिति किं सिद्धान्ततो न जानासि । शस्तोऽतिसखिवदुपपतिरित्यालि ! न कि समानासि ॥७४॥
टीका-हे सखि ! सखिवदर्थात्त्वद्वत् पतिरपि प्राणवल्लभोऽपि शस्तः प्रशंसनीयोऽस्ति । यद्वा शस्तः शस्प्रत्ययत आरभ्य पुनः सखिशम्बवत् पतिशब्दोऽपि प्रवर्तत इत्येवं सिद्धान्ततो वस्तुत्वतो व्याकरणशास्त्राच्च त्वमपि किन्न जानासि ? एवं सखिवचने संजाते नायिकापि प्रतिवदति। यत्किल हे आलि ! सहचरि! उपपतिर्जारः सोऽपि अतिसखिवत् परमवयस्यावद्भवतीवेत्यर्थः। त्वदेव शस्तः प्रशंसनीयो भवति । अथवा तु अतिसखिशब्दवदुपपतिशब्दोऽपि शस्तः शस्त्रत्ययादारभ्य पुनः प्रवर्तत इत्येवं त्वमपि मानेन परिज्ञानेन सहिता नासि किम् ? अपि तु विदुष्येवासि ॥७॥
जारमें अब मेरा चित्त लग रहा है इससे विपरीत-विरूप, गुणहीन आर विपत्तियोंके स्थानभूत पतिमें नहीं लग रहा है।
द्वितीयार्थ-जिसकी मनोहर घु संज्ञा (घिसंज्ञा) व्याकरण प्रसिद्ध संज्ञा है, जो गुण-व्याकरण प्रसिद्ध गुण संज्ञासे श्रेष्ठ है, तथा जिसकी तृतीया विभक्तिमें ना आदेश नहीं होता है ऐसे 'उपपति' शब्दमें मेरा मन लग रहा है इससे रहित पति शब्दमें नहीं। ___ भावार्थ-'पति' और 'उपपति' दो शब्द है इनमें उपपति शब्दकी धु (पाणिनीय व्याकरणमें घि) संज्ञा होती है। उपपति शब्दमें उित् विभक्ति पड़े रहते गुण होकर 'उपपतये' आदि रूप बनता है तथा उपपति शब्दकी तृतीयाके एकवचनमें ना आदेश होकर 'उपपतिना' रूप बनता है ऐसे उपपति शब्दके चिन्तनमें मेरा मन लग रहा है पति शब्दके चिन्तनमें नहीं क्योंकि उसकी घु (घि) संज्ञा नहीं होती उसमें ङित् विभक्ति पड़े रहते गुण नहीं होता और तृतीयाके एकवचनमें ना आदेश नहीं होता है । यह श्लेषालंकार है ।।७३।। ___ अर्थ-हे सखि ! पति, सखिवत्-मित्रवत् अर्थात् तुम्हारे ही समान शस्तः--प्रशंसनीय है यह क्या वास्तवमें तुम नहीं जानती हो । सखीके ऐसा कहनेपर नायिका उत्तर देती है-हे आलि ! उपपति-जार अतिसखिवत्-परम मित्रके समान प्रशंसनीय है इस ज्ञानसे क्या तुम सहित नहीं हो ? भाव यह है कि यदि पति मित्रके समान है तो उपपति परम मित्रके समान है।
द्वितीयार्थ-हे सखि ! पति शब्द शस्तः-शस् प्रत्ययसे लेकर सखिवत्सखि शब्दके समान है यह बात क्या तुम सिद्धान्ततः-व्याकरणके अनुसार नहीं जानती हो । सखीके ऐसा कहनेपर नायिका उत्तर देती है-हे आलि ! उपपति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org