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षोडशः सर्गः
तबेममुच्चैस्तनशैलभूपम् ।
सद्धारगङ्गाधरमुग्ररूपं दिगम्बरं गौरि ! विधेहि चन्द्रचूडं करिष्यामि तमामतन्द्रः ॥ १४॥
टीका - हे गौरि ! गौरवर्णे ! पार्वति ! वा तवेममुच्चैस्तनशे लस्यात्युन्नत पर्वतस्य कैलासाख्यस्य भुवं पातीति उच्चैस्तनशेलभूपं तमेवोच्चैस्तनमेव शैलभूपं उरोरुहपर्वतनायकं तमेवोग्ररूपं महादेवस्वभावमुन्नतस्वभावं वा सन् चासौ हारो गलभूषणमेव गङ्गा तां धरतीति तं तथैव सती धारा यस्यास्तां गङ्गां धरतीति वा तमेनं दिगम्बरं विधेहि वस्त्ररहित कुरु यमहमतन्द्रोऽनलसो भूत्वा चन्द्रश्चूडास्थाने यस्यैतादृशं नखक्षतेन कृत्वा करिष्यामीति । श्लेषोऽत्र ॥ १४ ॥
१४ ]
भावार्थ—जलसे भरे कलशको धारण करनेवाली किसी स्त्रीसे कोई तृषातुर मनुष्य पानी पीनेके लिये अंजली बाँधकर पानीकी याचना करे और वह स्त्री 'हां पिलाती हूँ' ऐमे मधुर शब्द न कहे तो लोकमें उसे अच्छे स्वभाववाली नहीं कहा जाता इसीप्रकार मैं चिरकालसे आशा लगाये हुए हाथ जोड़कर तुमसे प्रेमकी याचना कर रहा हूँ पर तुम बोलती भी नहीं हो अतः तुम्हारा स्वभाव प्रशस्त नहीं जान पड़ता है ॥ १३ ॥
अर्थ - हे गौरवर्णे ! जो समीचीन हार रूपी गङ्गाको धारण कर रहा है तथा उग्र रूप है - उन्नत है ( पक्ष में शिव रूप है) ऐसे उच्चैस्तन शैलभूप- - उन्नत स्तन रूप गिरिराजको दिगम्बर - वस्त्र - रहित करो जिससे मैं आलस्य रहित हो उसे चन्द्र चूडकर सकूं - नख क्षतोंसे विभूषित कर सकूं ।
७५.
भावार्थ - हे गौरि ! तुम्हारा स्तन क्या है मानों शंकर है क्योंकि जिस प्रकार शंकर सद्धारगङ्गाधर समीचीन धारा वाली गङ्गाको धारण करते हैं उसी प्रकार स्तन भी सद्धारगङ्गाधर - समीचीन हार रूपी गङ्गाको धारण करता है । जिस प्रकार शंकर उग्र है—उग्र नामको धारण करते हैं उसी प्रकार स्तन भी उम्र है -- उन्नत है । जिस प्रकार शंकर उच्चैस्तन शैलभूप — अत्यन्त ऊँचे कैलास पर्वतकी भूमिको रक्षा करने वाले हैं उसी प्रकार तुम्हारा स्तन भी उच्च-स्तन शैलभूप है- - अत्यन्त उन्नत पर्वत राज है । तुम इसे दिगम्बर बना दो - दिगम्बर नामसे युक्तकर दो ( पक्ष में वस्त्र रहित कर दो ) जिससे मैं चन्द्रचूड - चन्द्रमौलि नामसे युक्त कर सकूं ( पक्ष में अर्ध चन्द्राकार नखक्षतोंसे विभूषित कर सकूं ) । संस्कृत कोषोंमें शंकरके निम्नलिखित नाम प्रसिद्ध हैंगङ्गाधर, उग्र, कैलासपति, दिगम्बर तथा चन्द्र चूड आदि । यहाँ श्लेषा - लंकार द्वारा इन नामोंका प्रयोग किया गया है । 'गौरी' नाम पार्वतीका भी प्रसिद्ध है ॥१४॥
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