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९७-९८] पञ्चदशः सर्गः
७५१ स्त्रियः कम्पवतः कम्पनशीलात्करात् हस्तात् अतिभरादिवासहमानसम्भारादिव किल निपपात पतितमासीत् ॥१६॥ कान्तावलोकविकसन्नयनप्रणुन्नं
कम्जन्तु सम्भ्रमवतः श्रवणान्नताझ्याः । प्राणेशपादभुवि सन्निपतद् रराजा
तिथ्ये दृशः परिकृतं प्रतिबिम्बमेव ॥९७॥ टीका-कान्तस्य प्रियस्यावलोके विकसद् विकासमाप्तवद् यन्नयनं नेत्र तेन प्रणुन्नं प्रेरितं सम्भभवतो विनययुक्ताया नताझ्या अभ्युत्थानादि कृतवत्याः श्रवणात्कर्णदेशात् प्राणेशः स्वामी तस्य पावभुवि पुरोभागे सन्निपतद् पातवत् कजं कर्णपुष्पं तु पुनशश्चक्षुषः प्रतिबिम्बं प्रतिनिधिस्वरूपमेवातिथ्ये परिकृतं प्रेषितमेव रराज शुशुभे ॥९७॥
प्रमदा प्रमदाश्रभिः प्रिये समुपागच्छति सत्वरं तराम् । स्नपयत्यमुकोचितासनं निजवक्षः स्म चकोरलोचना ॥९८॥
टीका-चकोरलोचना चकोरस्य लोचने इव लोचने यस्याः सा प्रमदा प्रसन्नवदना स्त्री प्रिये प्राणेश्वरे समुपागच्छति समीपमागतवति सति अमुकस्य स्वामिनः उचितं योग्यं च तदासनं च तन्निजस्यात्मनो वक्ष उरस्थलं प्रमदेन तत्कालसम्भवेनानन्दसंवोहेन जाते रवभिनयनजलेः कृत्वा स्नपतिस्म । सा प्रसन्ना नायिका ॥९८॥
बहुत भारी प्रतिबिम्बको धारण करने वाला दर्पण किसी स्त्रोके कांपते हुए हाथसे नीचे गिर गया मानों प्रतिबिम्बके भारी होनेके कारण ही उसका हाथ कांपने लगा था ॥१६॥
भावार्थ-पतिको पास आता देख स्त्री लज्जासे नीचेकी ओर देखने लगी। उसने पतिकी ओरसे लज्जावश अपनी दृष्टि हटा ली परन्तु पतिका प्रतिबिम्ब दर्पणमें लेकर उसे अनुराग पूर्वक देखने लगी । देखते-देखते उसके हाथमें वेपथुकम्पन नामक सात्त्विक भाव प्रकट हो गया और उस कारण दर्पण हाथसे छूटकर नीचे गिर गया नीचे गिरने का कारण यह था मानों वह प्रतिबिम्ब इतना गुरुतर-श्रेष्ठतर अथवा अत्यन्त वजनदार था कि स्त्रीका हाथ उसका भार सहन करनेमें असमर्थ हो गया था ॥१६॥ ___ अर्थ-पतिके आनेपर उठकर खड़े होने और प्रणाम करनेके संभ्रमसे युक्त किसी स्त्री के कानसे गिरकर जो कमलपतिके चरणाग्र-आगे गिर गया था वह ऐसा सुशोभित हो रहा था मानो पतिके दर्शनसे खिलते हुए नयन कमलसे
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