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________________ ७४९ ९१-९२-९३ ] पञ्चदशः सर्गः कुसुमादपि सुकुमारं वपुरबलानामितीदमुद्धरति । इषुणा स्मरस्य सुन्वर ! कुसुमेन हतं तदीयाङ्गम् ॥९१॥ टोका-हे सुन्दर ! मनोहराङ्ग ! तदीयमङ्गं शरीरं स्मरस्यानङ्गस्येषुणा वाणेन कुसुमेन पुष्पात्मकेन हतं क्षतभावं गतं सत् अबलानां स्त्रीणां वपुः शरीरं कुसुमावपि फुल्लापेक्षयापि सुकुमारं कोमलतरं भवतीति लोकल्यातमिदं उद्धरति स्पष्टीकरोति तावत् ॥९॥ अनुरागवतिना तव विरहेणोग्रेण सा गृहोताङ्गी। किमु सम्बदामि गौरी सज्जाताविशिष्टेव ॥९२॥ टीका-अपि तवानुरागवतिना प्रेमवशंगतेन विरहेणेवोग्रेण भयंकरेण क्रेण वा गृहीतमङ्ग यस्याः सा गौरी गौरवर्णा गिरिजा वा हे सुन्दर ! अद्धविशिष्टा कृशकायतया मीणशरीरा महादेवेन कृत्वा कायानुप्रविष्टकायतया वा सज्जाता हे सज्जनाहं किमु परं सम्बवाभि । सा तव विरहवशा प्रतिदिनं क्षीयत इति ॥९२॥ इन्दुकरैर्मलयभवैतिः स्पृष्टा मुहुश्च मज्जुमते । दोषभयादिव सिञ्चति तनुमतनुसदश्रुपूरैः सा ॥९३॥ टोका-हे मज्जुमते ! सुकुमारबुद्धे ! सा मम सखी इन्वोश्चन्द्रस्य करः किरणेरेव हस्तेमलयभवैक्षिणदिग्भवः (मलं याति प्राप्नोति मलयस्तस्माद्भवः समुत्पन्ना) वातायुभिः मुहुः पुनः पुनः स्पृष्टा सती मास्म कदाचिद्भववन्यपुरुषसंसर्गजन्यो दोष इति अर्थ-हे सुन्दर ! उसका शरीर कामदेवके पुष्परूप बाणके द्वारा घायल हो गया है इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि स्त्रियोंका शरीर फूलसे भी अधिक सुकुमार होता है ।।२२।। अर्थ-सुन्दर ! क्या कहूँ ? तुम्हारे अनुरागके वशीभूत उग्र-भयंकर (पक्ष में विरहरूप रुद्र) विरहके द्वारा जिसका शरीर गृहीत है तथा जो दुर्बलताके कारण आधी रह गई है (पक्ष में महादेवने जिसे अर्धांगी बना लिया है) ऐसी वह गौरी-गौर वर्णवाली स्त्री सचसुच ही गौरी-पार्वती हो गई है ।।९२।। अर्थ-डे सुकुमारबुद्धे ! इन्दुकर--चन्द्रमाकी किरणरूप हाथों और मलयवात-दक्षिण वायुके द्वारा बार-बार स्पर्शको प्राप्त हुई बेचारी वह दोषके भयसे ही मानों अर्थात् मुझे परपुरुषने अपने हाथोंसे छू लिया है तथा मुझे मलिन पदार्थके संसर्गसे दूषित वायु स्पर्श कर रही है इस दोषके भयसे, कामसे उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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