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________________ ८२-८३ ] पञ्चदशः सर्गः अनुबद्धपरस्परागुलिस्वकरद्वन्द्वमुदउच्य जम्भिणी। हृदयं विशतो मनोभुवः कृतवत्येव च तोरणश्रियम् ॥८२॥ टीका-अनुबद्धाः सम्मिलिताः परस्परस्याङ्गुलयो यत्र तदनुबद्धपरस्परागुलि स्वस्य करयोहंस्तयोर्द्वन्द्वमुदच्योच्चैविधाय जम्भिणी जम्भावती स्त्री तत्कालं हृदयमन्त:करणं विशतः प्रवेशं कुर्वतो मनोभुवो मदनस्य तोरगधियं सालंकारद्वारोद्धाटनशोभा कृतवती सम्पादयतीव रराजेति शेषः ॥२॥ प्रियागमनतत्परा यदधिजानु सत्कर्परा भिनम्रकरपल्लवापितकपोलमूला परा। लिलेख समयोचितोत्पठितमञ्जु मजु स्वना परेण भुवि पाणिना किमपि यन्त्रमाकर्षकम् ॥८३॥ टोक-परान्या कापि स्त्री प्रियस्यागमने तत्परा तल्लीना यत् यस्मात् किल जानूपरिवर्तमानमधिजानु सन् प्रशंसनीयः कूर्परः कफोणिदेशो यत्र स चासावभिनम्रो नतिमाप्तः कर एव पल्लवस्तस्मिन्नपितं संधारितं कपोलस्य मूलं यया सा सती मज्ज जाता है परन्तु हे पापी रांगे ! तूं मुग्ध स्त्रियोंके पैरोंमें स्थितिको प्राप्त हो रहा है अर्थात् स्त्रियाँ तेरे कड़े बनवाकर पैरों में पहिनती है इस तरह तूं भाग्यहीन है। भावार्थ-अविचारी लोगोंके द्वारा अच्छे बुरेका विचार न किया जावे यह ठीक है परन्तु जो विशाल दृष्टि विचारवान हैं वे अच्छे बुरेका विचार अवश्य करते हैं। इसीलिये विशाल दृष्टि स्त्रियाँ सीसफूल बनाकर रत्न जटित स्वर्णको मस्तकपर धारण करती हैं और मुग्ध-मूढ-ग्राम्य स्त्रियाँ कड़े बनवाकर रांगेको पैरों में पहिनती हैं। तात्पर्य यह है कि स्त्रियाँ रत्न जडित स्वर्णमय शीशफूल मस्तकोंपर धारण कर रही हैं ॥८१॥ ____ अर्थ-जिनकी अगुलियाँ परस्पर मिली हुई हैं ऐसे दोनों हाथोंको ऊपर उठाकर जमुहाई लेती हुई स्त्री ऐसी सुशोभित हो रही थी मानों उस समय हृदयमें प्रवेश करते हुए कामदेवके लिये तोरण ही बाँध रही हो ।।८२।। - अर्थ-प्रियागमनकी प्रतीक्षामें लीन तथा घुटनोंपर रखी टेहुनीसे कुछ झुके कर पल्लवमें कपोल रखे हुई कोई मधुरभाषिणी स्त्री उस अवसरके योग्य पाठ पढ़ती हुई दूसरे हाथसे पृथिवीपर किसी आकर्षक अनिर्वचनीय यन्त्रको लिख रही थी। भावार्थ-पति प्रतीक्षामें लीन कोई स्त्री घुटनेपर स्थित एक हाथमें कपोल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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