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६९-७० ]
पञ्चदशः सर्गः
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जयन्तु तवेतत्समादाय लात्वा मुवे प्रसत्तये लाञ्छनेशश्चन्द्रमाः कर्ता विगङ्गना लिम्पति चन्द्रोदये समुद्रोऽभ्युदयमाप्नोति विशाश्च सर्वाः प्रसादमाप्नुवन्ति ॥ ६८॥
स्तनन्धयः सम्भवतीव कामी यज्जन्मपत्रस्य विधोः स्मरामि । यस्यारिभावे गुरुशुक्लतास्ति व्ययस्थलेऽथो तमसोऽभ्युपास्तिः ||६९||
टीका - कामी जनो भवनभावनावान् स स्वनं धावतीतिस्तनन्धयो नाम महिलासहवाससहितोऽथ च स्तनपानशीलः सम्भवति । यस्य जन्मपत्र यज्जन्मपत्र तस्य विधोश्चन्द्रस्य स्मरामि चन्द्रमसं स्तनन्धयस्य कामिनो जन्मपत्रमेवानुभवामि, यस्य व्ययभावे द्वादशे स्थाने तमसो नाम राहोरभ्युपास्तिरय च व्ययस्थले नाशस्वरूपे तमसोऽन्धकारस्याऽभ्युपास्तिः, अरिभावे षष्ठस्थले गुरुब हस्पतिः शुक्लश्च भृगुस्तयोर्भावः गुरुशुक्लता यहा गुर्वी शुक्लता धवलीभावोऽस्ति किल ॥ ६९ ॥
पीयूष पात्रान्निपतन्ति यानि पृषन्ति सन्तीव शुभानि भानि । जर्नरिवानीमुत दृश्यते खाद्भिन्नस्य तस्यैव कलङ्क रेखा ॥७०॥
फेन रूपी चन्दनको लेकर आनन्दके लिये यह चन्द्रमा दिशारूनी स्त्रियोंको लिप्त कर रहा है।
भावार्थ - चन्द्रोदय होनेसे समुद्र लहराने लगा है । लहरानेसे फेन उत्पन्न हो रहा है और उसकी सफेदीसे दिशाएँ उज्ज्वल हो रही हैं ॥ ६८ ॥
अर्थ- - इस समय मनुष्य कामी - कामवासनासे युक्त क्या हुआ है मानों बालकका जन्म हुआ है क्योंकि जिस प्रकार कामी मनुष्य स्तनन्धय - स्तनकी ओर दौड़ता है - स्तनस्पर्श करना चाहता है उसी प्रकार बालक भी स्तनन्धयस्तनपान करने वाला होता है । मैं चन्द्रमाको उस बालकका जन्मपत्र समझता हूँ अर्थात् चन्द्रमासे मनुष्यके मनमें कामभावनाकी जागृति होती है । उस चन्द्रमा रूप जन्मपत्रके अरिभाव- षष्ठस्थान में गुरुशुक्लता - बृहस्पति और शुक्र ग्रहका सद्भाव है ( पक्ष में अत्यधिक शुक्लता - सफेदीका सद्भाव है) और व्ययस्थानबारहवें स्थानमें तम- राहुग्रहकी उपासना-सद्भाव है। पक्षमें अन्धकारका सद्भाव है ।
भावार्थ - जिस प्रकार बालकके जन्मपत्र में चन्द्र, गुरु, शुक्र और राहुका विचार किया जाता है उसी प्रकार कामी मनुष्यके विषय में भी श्लेषसे चन्द्र, गुरु शुक्र और तम - राहुका विचार किया गया है ||६९ ||
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