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________________ ७३१ ५१-५२-५३ ] पञ्चदशः सर्गः निष्पीडयमाने तिमिरे करेण भृशं सितांशोविधिनादरेण । भङ्क्त्वार्गलं कोकयुगं दाराशयेन सद्द्वार मदायि चारात् ॥५१॥ टीका-सितांशो म चन्द्रस्य करेण किरणे व हस्तेन भृशं मुहुः निष्पोड्यमाने ताडयमाने तिमिरे तमःसमूहे सत्युदाराशयेन महात्मना विधिनादृष्टेनादरेण विनयेन कृत्वा कोकयोर्युगं मिथुनं तदेवार्गलं निगडं भङ्क्त्वा विभज्याराच्छीघ्रमेव सत् सम्यक् द्वारं मार्गमुखमदायि वत्तं । सूर्यास्तमुपेत्य चक्रवाकमिथुनं विच्छिन्नं चन्द्रोदयेन कृत्वा तिमिरं विनष्टमिति ॥५१॥ शाणोपलेऽस्मिन्खलु शीतभानावयं जगत्ताडनकुण्ठितानाम् । उत्तेजनामङ्कपरिस्थितीनां स्मरः शराणां समुपैत्यदीनाम् ॥५२॥ टीका-अयं स्मरः जगतां प्राणिमात्राणां ताडनं तेन कृत्वा ताडनकर्मणि व्यापारेण कृत्वा कुण्ठितानां शराणामात्मवाणानामङ्कपरिस्थितीनां टङ्ककृतचिह्नस्थ परिस्थितियंत्र तेषां, अस्मिन् शोतभानी चन्द्रमसि नाम शाणोपले घर्षणपाषाणे नदीनामदीनामति प्रशस्तामुत्तेजना तैक्षण्यकरणवृत्ति समुपैति प्राप्नोति चन्द्रोदये प्राणिमात्रषु कामसंचारो भवतीति तात्पर्यार्थः ॥५२॥ विलासिनीनां प्रतिवीथि आस्यं निरीक्षमाणः शुचिहासभाष्यम् । करान्प्रसार्योपगवाक्षमिन्दुः सौन्दर्य भिक्षामटतीष्टविन्दुः ॥५३॥ टीका-वोथि वीथि प्रति प्रतिवीथि सर्वासु रथ्यासु स्थितानां विलासिनीनां पण्यस्त्रीणां अर्थ-जब चन्द्रमाको किरण रूपी हाथोंके द्वारा अन्धकार बार-बार अत्यधिक पीड़ित होने लगा तब उदाराशय-दयालु दैवने आदरपूर्वक चक्रवाक युगल रूपी आगलको तोड़कर भागनेके लिये उसे अच्छा-विस्तृत द्वार दे दिया। भाव यह है कि चन्द्रोदय होनेसे अन्धकार नष्ट हो गया और चकवा चकवी का युगल बिछुड़ गया ॥५१॥ अर्थ-सचमुच, कामदेव इस चन्द्रमा रूपी मसाण पर जगत्को ताडित करनेसे मोथले अपने उन वाणोंकी तीक्ष्णताको प्राप्त करता है जो अङ्कचन्द्रमाके चिह्न पर स्थित हैं। भावार्थ-चन्द्रमा काम बाणोंको पैना करनेके लिये मानों मसाण-घिसने का पाषाण है और उसके बीच जो काला चिह्न है वह बाणोंके घिसनेसे उत्पन्न हुआ दाग है ॥५२॥ अर्थ-चन्द्रमाकी किरणें गली गलीमें झरोखोंके पास पहुंच रही हैं उससे ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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