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[ १२-१३-१४
हंस हठात्सायमयेन भुक्तं समुज्झितोपान्ततयोपरक्तम् । निभालय नीडान्यधुना श्रयन्ति द्विजातयस्तं च पुनः शपन्ति ॥ १२॥
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जयोदय-महाकाव्यम्
टीका - सायमयेन सन्ध्याकालरूपेण केनापि मांसाशिना हठाद् बलात्कारेण कृत्वा समुज्झितोपान्ततया परित्यक्तो परिमभागतयोपरक्तं उपरिस्थत्वगंशपरिहारेणेति कृत्वा - भिव्यक्तलोहितत्वं किल हंसं सूर्यमेव मानसौकसं भुक्तं भक्षितं निभाल्य दृष्ट्वाधुना साम्प्रतमस्माकमध्ये वावस्था स्यादिति संत्रस्ताः सन्तः सर्वेऽपि द्विजातयः पक्षिणो नीडानि कुलायस्थानानि श्रयन्ति तं च पुनर्भोक्तारं कलकलेन कृत्वा दुष्टं वदन्तीति ॥१२॥
उच्चैस्तनाकाशगिरीशसानोः श्रीगैरिकस्योच्चय एव भानोः । मिषाच्च्युतोऽतः समुदेति पांशु: सायाख्ययायं सुतरां ततांशुः ॥ १३॥
टीका - उच्चैस्तन उच्चतरो य आकाशस्यैव गिरीशस्य पर्वतराजस्य सानुः शृङ्गभागस्तस्मात् गगनरूपपर्वतोपरिमस्थलात् भानोः सूर्यस्य मिषात् श्रोगेरिकस्योन्चयो रक्तरेणुस्कन्धश्च्युतो भाति, अतएव कारणात्सुतरां स्वयमेव तता विस्तृता अंशवो यस्य सततांशुः पांशुः सूक्ष्मधूलिलेशोऽयं सायास्यया सन्ध्यारुणिमनाम्ना समुवेति किल ॥१३॥
पीत्वा दिवा श्रीमधुनस्तु पात्रं पूषा पुनर्लोहितमेत्य गात्रम् । क्षीवत्वमापन्न इवायमद्य समीहतेऽहो पतितुं विपद्य ॥ १४ ॥
का मुख श्याम हो गया और इसी शोकसे उदित होनेवाले नक्षत्रोंके छलसे उसकी अधारा निकल रही है, ऐसी मेरी भावना है - कल्पना है ॥११॥
अर्थ -- सन्ध्या समय पक्षी कलकल शब्द करते हुए घोंसलों में चले जाते हैं । क्यों ? इसका उत्तर कवि इस प्रकार दे रहा है
पक्षियोंने समझा कि हंस' - मराल ( पक्ष में सूर्य ) को सायंकाल रूपी किसी मांसभोजीने जबर्दस्ती खा लिया है। खाते समय उसके ऊपरका खून से लथपथ लाल चमड़ा छोड़ा है । कहीं हमारी भी ऐसी अवस्था न हो जावे, इस आशङ्कासे भयभीत हो पक्षी सुरक्षाकी दृष्टि से घोंसलोंका आश्रय ले रहे हैं और कलकल शब्दके रूपमें उस खाने वालेको दुष्ट कह रहे हैं ||१२||
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अर्थ - ऐसा जान पड़ता है कि अत्यन्त ऊँचे आकाश रूपी पर्वतराजकी शिखरसे सूर्यके बहाने यह गेरूका समूह गिरा है उसीको यह विस्तृत किरणों वाली धूलि सन्ध्या नामसे ऊपरकी ओर उड़ रही है ||१३||
१. हंसः सूर्यमरालयोः इति विश्वः हंसः पक्ष्यात्मसूर्येषु' इत्यमरः ।
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