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पञ्चदशः सर्गः मितिरनुज्ञा तया स्मिताया विस्मिताया अहो आश्चर्यचकितायाः प्रतीच्या विशायाः पश्चिमाया उदात्तस्योच्छूनीकृतस्याधरबिम्बस्य कान्तिः प्रभा सा बहु भातितमामिति मन्येऽहं जानामि किल। यद्वा साश्चयं यथा स्यात्तथा समीक्ष्य स्मिताया इत्येवमपि व्याख्येयम् ॥५॥ उपागतेऽहस्कृति तस्य वीनां कलैः कृतातिथ्यकथाप्यशीना। श्री शोणिमच्छामयं प्रतीची दधाति सच्छाटकमात्तवोचिः ॥६॥
टोका-अहस्कृति सूर्ये समागते सन्निकटमागते सति अशीना कर्तव्यविचारशीलेव प्रतीची आत्तवोचिः समुपलब्धप्रसत्तिः सती वीनां पक्षिणां कलैर्मधुरशब्दैः कृत्वा तस्य सूर्यस्य कृता प्रारब्धातिथ्यकथाऽतिथिसत्कारविषये सम्भवयोग्यकुशलक्षेमाविरूपा वार्ता यया सा, श्रीशोणिमच्छामयं श्रीशोणिमा सन्ध्यासमयलालिमैवेतिच्छद्मना व्याजेन युक्तमिति तन्मयं शाटकं वस्त्र वधाति । 'शीनोऽजगरमूर्खयोः' । 'अवकाशे सुखे वीचिः' इति विश्वलोचनकोषे ॥६॥ निभाल्य भानुं विशि पश्चिमायां धृतानुरागं घुपतेदिशायाः । मित्रामुकं पश्य तमालदास्यमास्यं जनीमत्सरभावभाष्यम् ॥ ७॥
टीका-पश्चिमायां विशिषतः सम्बद्धोऽनुरागो लालिमा प्रेमभावश्च येन तं भानु
भावार्थ-सूर्य, अपनी प्रेमिका कमलिनीको छोड़कर पश्चिम दिशा रूपी नायिकाके पास चला गया । इस अनादरसे कमलिनी संकोच को प्राप्त हो गई। उसकी इस दशाको देख पश्चिम दिशाने आश्चर्य प्रकट किया और अपने सौभाग्यकी वृद्धिका गर्व कर अपना अधरोष्ठ फुलाया था। एक स्त्री पतिके आने पर अपने आपको सौभाग्यशालिनी मानती हुई सपत्नीको चिढ़ानेके लिये ऐसी करती है ।। ५ ॥
अर्थ—सूर्यके आने पर जिसने पक्षियोंको मधुर शब्दोंसे कुशल समाचार पूछ कर अतिथि सत्कार किया था ऐसी विचारशील पश्चिम दिशाने प्रसन्नता को प्राप्तकर लालिमाके छलसे उत्तम साड़ी धारण की।
भावार्थ-जिस प्रकार प्रवाससे पतिके आने पर बुद्धिमती स्त्री पहले कुशल समाचार पूछकर उसका अतिथि सत्कार करती है पश्चात् प्रसन्न होती हुई सौभाग्य सूचक लालसाड़ी पहिनती है उसी प्रकार पश्चिम दिशा रूपी स्त्रीने सूर्य रूपी वल्लभके आनेपर पहले पक्षियोंकी मधुर बोलीसे उसका अतिथि सत्कार किया पश्चात् लालिमाके छलसे सौभाग्य सूचक लाल साड़ी पहिनी ॥ ६ ॥
अर्थ सूर्यको पश्चिम दिशामें सानुराग-लाली अथवा प्रेम सहित देख पूर्व
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