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________________ ४७४ जयोदय-महाकाव्यम् [३४-३६ निबबन्ध मृगीदृशः कचान जगतो यौवतकीर्तये रुचा। विधवत्वविधानवाससः समयान् कापि गुणानिवेदृशः ॥ ३४ ॥ निबबन्धेति । काप्याली मृगीवृशस्तस्याः कचान् रुचा कान्त्या जगतः संसारस्य यौवतस्य युवतिसमूहस्य कोर्तये विधवत्वविधानवाससो वैधव्याचरणवस्त्रस्य समयान् सवृशानीवृशो गुणानिव निबबन्ध नितरामबध्नात् ॥ ३४ ॥ स्फुटहाटकपट्टिकाश्रिया दिनरात्र्यन्तरसायसत्क्रिया। अलिकालकयोरिहान्तरा सममेवेति समद्युतत्तराम् ।। ३५ ॥ स्फुटेति । इह सुशो ललाटेलिकालकयोरन्तरा मध्ये स्फुटा दीप्ता या हाटकपट्टिका नाम विभूषा बद्धति शेषः । तस्याः श्रिया कान्त्या, दिनराश्यन्तरे सायसत्क्रिया सन्ध्याकालशोभा जातेति भावः। सा च; ललाटकचयोः सममेव सार्धमेवाद्युतत्तराम् अतिशयेनाघोतिष्ट ॥ ३५ ॥ न दृगन्तसमर्थिनी रसादिह लेखा खलु कज्जलस्य सा । समपूरि तु सूत्रणक्रिया नयने वर्धयितुं वयः श्रिया ॥ ३६ ॥ न हगन्तेति । रसाद्धर्षात्खलु वृगन्तं नेत्रमर्यादां कटाक्ष वा समर्थयति सा या कज्जलरेखा समपूरि, सा नयने वर्तयितुवयाश्रिया तारुण्यलक्ष्म्या सूत्रणक्रिया इव समपूरीत्यर्थः । उपमा ॥३६॥ अन्वय : कापि मृगीदृशः कचान् रुचा जगतः यौवतकीर्तये विधवत्वविधानवाससः समयान् ईदृशः गुणान् इव निबबन्ध । अर्थ : किसी सखीने हरिणाक्षी सुलोचनाके बालोंको उसकी कान्तिसे संसारकी स्त्रियोंकी कीत्तिके लिए विधवापनमें धारण करने योग्य वस्त्रकी तरह धागोंसे बाँध दिया ॥ ३४ ॥ __ अन्वय : इह अलिकालकयोः अन्तरा स्फुटहाटकपट्टिकाश्रिया दिनरात्र्यन्तरसायसत्क्रिया ( जाता ), इति समम् एव समद्युतत्तराम् । अर्थ : सुलोचनाके ललाट और बालके मध्य श्वेत हाटकपट्टिका नामक आभूषणके सौन्दर्यसे दिन और रातके बीच सायंकालकी शोभा प्राप्त होती थी, जो ललाट और बालके साथ ही अत्यन्त चमक रही थी॥ ३५ ॥ अन्वय : रसात् खलु दृगन्तसमर्थिनी (या) कज्जलस्य रेखा समपूरि, सा नयने वर्षयितुं वयश्रिया सूत्रणक्रिया ( समपूरि )। अर्थ : हर्ष-वश उस समय नेत्रके कोने तक खींची गयी कज्जलकी रेखा, मानो नेत्रोंको बढ़ानेके लिए यौवनश्री द्वारा सूत्रित की गयी थी ।। ३६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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