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________________ ५९-६० ] पञ्चमः सर्गः ૨૪૧ यापि काचिदुपमा सुदृशः स्यात्सैव नित्यमपकारपरास्याः। सैव वा कविवरैरुदिता या सङ्गतास्ति न परा मुदितायाः ॥ ५९॥ यापीति । सुदृशोऽस्याः सुलोचनाया विषये यापि काचिदुपमा कविवररुदिता, सैव नित्यमपकारपरा हपकी बभूव, न जातुचितुपकर्तीति भावः। यद्वा, सेवोपमैव नाम नपकारे परा परायणा साऽपकारपरा सोमा नाम पार्वती बभूव । अथवा सैव पुनरुदितोकारवजिता मा नाम लक्ष्मीरिति मुदितायाः प्रसनरूपाया एतस्याः परा काप्युपमा सङ्गता नास्तीत्यर्थः॥ ५९॥ कौतुकाशुगसुलास्यविधाने रङ्गभूमिरियमित्यनुमाने । सूत्रधार इह सौविद एव स्यान्महेन्द्रयुतदत्तसमाह्वः ॥ ६० ॥ कौतुकेति । कौतुकस्य कुसुमस्य आशुगो बाणो यस्य तस्य मकरध्वजस्य यच्छोभनं लास्यं नृत्यं तस्य विधाने, इयं सुलोचना रङ्गभूमिरित्येवमनुमानेऽसौ महेन्द्रयुतदत्तसमाह्वो महेन्द्रदत्तनामधारकः सौविवः कञ्जक्येवेह सूत्रधारः स्यात् ॥ ६०॥ अन्वय : सुदृशः अस्याः या काचित् अपि परा उपमा कविवरैः उदिता, सा नित्यम् अपकारपरा एव ( बभूव ) वा सा एव उदिता उपमा मुदितायाः ( अस्याः का अपि ) परा ( उपमा) सङ्गता न ( अस्ति)। अर्थ : शोभन नेत्रोंवाली इस राजकुमारी सुलोचनाके लिए महाकवियों ने जो भी कोई उपमा दी, वह अपकार करनेवाली हा हुई। कारण, उससे उसका कोई उत्कर्ष नहीं हुआ, क्योंकि उससे बढ़कर कोई उपमान ही नहीं । अथवा वह उपमा अ+ पकारपरा (पकाररहित-उमा = पार्वतीरूप ) ही हुई। अथवा वही उपमा पकाररहित होनेके साथ उकारके भी 'इत्' (लोप ) से सहित (पकारके साथ उकारसे भी रहित यानी केवल 'मा' = लक्ष्मीरूप) हुई। ये ही दो देवियां इसकी उपमान बन सकती हैं। प्रसन्नरूपा इस राजकुमारीके लिए इनसे बढ़कर कोई भी उपमा संगतं नहीं हो सकती, यह भाव है ।। ५९ ॥ ____ अन्वय : इयं कौतुकाशुगसुलास्यविधाने रङ्गभूमिः इति अनुमाने इह महेन्द्रयुतदत्तसमाह्वः सौविद एव सूत्रधारः। ___ अर्थ : यह सुलोचना पुष्पसायक कामदेवके शोभन नत्यकी रंगभमि, रंगमंच है, इसप्रकार प्रकार अनुमान लगानेपर वहाँ सूत्रधार महेन्द्रदत्त नामक कंचुकी ही कहा जायगा ॥६० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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