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________________ १५०-१५२] द्वितीयः सर्गः १२५ हत्वा हस्तेन भर्तारं सहाग्नि प्रविशन्त्यहो । वामा गतिहिं वामानां को नामावैतु तामितः ॥ १५० ॥ हत्वेति । एताः स्त्रियः स्वहस्तेन भर्तारं हत्वा पुनः तेनैव सहाग्नि प्रविशन्त्यही आश्चर्यम् । अतो वामानां स्त्रीणां गतिर्वामा विरुद्धा भवति, हि निश्चये। अत इतोऽस्मिल्लोके ताम्, कः पुरुषोऽवैतु जानातु, न कोऽपीत्यर्थः ॥ १५० ॥ प्रत्ययो न पुनः कार्यः कुलीनानामपि स्त्रियाम् । राजप्रियाः कुमुद्वत्यो रसन्ते मधुपैः सह ॥ १५१ ।। प्रत्यय इति । इतरासां स्त्रियां तु का वार्ता, कुलीनानां स्त्रियामपि प्रत्ययो विश्वासो न कार्यः, यतो राज्ञश्चन्द्रमसः, पक्षे भूपतेः प्रिया वल्लभाः कुमुद्वत्यः कैरविण्यो मधुपैभ्रमरैः, पक्षे मद्यपैः सह रमन्ते ॥ १५१॥ रूपवन्तमवलोक्य मानवं तपितृव्यमथवोदरोद्भवम् । - योषितां तु जघनं भवेत्तथा ह्यामपात्र मिव तोयतो यथा ।। १५२ ।। अर्थ : आश्चर्य तो यह है कि स्त्रियां विपुल रूईके गद्देपर अपने अनुकूल व्यवहार करनेवाले पतिको भी छोड़कर किसी दूसरेके साथ जहाँ-कहीं, आंगनमें भी रमण करने लग जाती हैं, यह उनकी बड़ी भारी वंचकता है ॥ १४९ ॥ अन्वय : अहो ( एताः ) हस्तेन भर्तारं हत्वा तेन सह अग्नि प्रविशन्ति, इति वामानां वामा गतिः । कः नाम ताम् इतः अवैतु । अर्थ : आश्चर्य है कि ये स्त्रियाँ अपने भर्ताको अपने हाथों मार डालती और फिर उसीके साथ अग्निमें सती होने जाती हैं। निश्चय ही वामाओं यानी स्त्रियोंकी चेष्टाएँ वामा यानी विपरीत, परस्पर विरुद्ध होती हैं। इस संसारमें कौन पुरुष उनका रहस्य जान सकता है ।। १५० ॥ __ अन्वय : पुनः कुलीनानाम् अपि स्त्रियां प्रत्ययः न कार्यः। राजप्रिया कुमुद्वत्यः मधुपैः सह रमन्ते । अर्थ : फिर और स्त्रियोंको बात ही क्या, कुलीन स्त्रियोंका भी विश्वास नहीं करना चाहिए । देखिये, राजा चन्द्रमाकी प्यारी कुमुदिनियाँ भी भौरोंके साथ रमण किया करती हैं। यहाँ किन्हीं राजरानियोंके मनचलोंके साथ रमण व्यवहारका चन्द्र-कुमुदिनीपर आरोप कविका तात्पर्य-विषय है ।। १५१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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