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________________ जयोदय-महाकाव्यम् [ ७८-८० गोमयेन खलु वेदिलिम्पनप्रायकर्म लभतामितो जनः । नास्तु पाशविकविट्तयाऽन्वयःकिन्नु गव्यमिव चाविकं पयः॥ ७८ ॥ गोमयेनेति । जनो लोक इतः खलु गोमयेन वेदिलिम्पमप्रायकर्म लभतां प्राप्नोतु । यत्र गोमये पाशविकश्चासौ विट् तस्य भावस्तया पशुपुरीषतयाऽन्वयः सम्बन्धो नास्तु । किम् आविकं मेषसम्बन्धि पयो गव्यं गोदुग्धमिव भवति ? ॥ ७८ ॥ शुद्धिरस्ति बहुशः क्षणोद्भवा ग्राह्यतामनुभवेत्पयो गवाम् । स्वोचितात्समयतः परन्तु वा काल एव परिवर्तको भुवाम् ॥ ७९ ॥ शुद्धिरिति । क्षणोद्भवा. शुद्धिः कालशुद्धिबहुशोऽनेकविधा भवति। गवां पयः प्रसूतिसमय एव ग्राह्यं न भूत्वा पक्षावुत्तरं ग्राह्यं भवति । काल एव भोगभूमि-कर्मभूमिभेदाद् भुवां परिवर्तको भवतीत्यर्थः ॥ ७९ ॥ अम्भसा समुचितेन चांशुकक्षालनादि परिपठ्यतेऽनकम् । सम्प्रपश्यति हि किन्न साधुचिद्वारिचारितमुदूखलं शुचि ॥ ८० ॥ रीतिसे भस्म द्वारा मांजकर शुद्ध कर लें। क्योंकि भस्म द्वारा संस्कारित किया धान्य भी घुनता नहीं, यह हम प्रत्यक्ष देखते ही हैं ।। ७७ ।। ___ अन्वय : जनः इतः खलु गोमयेन वेदिलिम्पनप्रायकर्म लभता यत्र पाशविकविट्तया अन्वयः नास्तु। किन्नु आविकं पयः गव्यम् इव । ___अर्थ : मनुष्यको चाहिए कि वेदोके लिम्पन आदि कार्यों में गोमयका उपयोग करे। गोमय भी पशुकी विष्टा है, ऐसा समझकर उसे अस्पृश्य न समझें। कारण, गायका दूध भी दूध है और भेड़का दूध भी दूध है, फिर भी दोनों समान नहीं हैं ।। ७८ ॥ __अन्वय : क्षणोद्भवा तु शुद्धिः बहुशः अस्ति । गवां पयः स्वोचितात् समयतः परं ग्राह्यताम् अनुभवेत् । कालः एव भुवां परिवर्तकः । अर्थ : कालशुद्धि तो अनेक प्रकारकी होती है, जैसे कि रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है। देखिये, गायका दूध बच्चा जननेके साथ ही मनुष्यके ग्रहणयोग्य नहीं हो जाता। यदि कोई भूलसे उसी समय उसका दूध पीने लगे तो वह उसके स्वास्थ्यके लिए हानिकारक होता है । अतः उसे दस-पन्द्रह दिनोंके बाद ग्रहण किया जाता है, यह स्पष्ट है। इसी तरह काल प्रत्येक पदार्थमें परिवर्तन लानेवाला माना गया है।॥ ७९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002756
Book TitleJayodaya Mahakavya Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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