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पट्टावली -पराग
के सम्बन्ध में कुछ भी निश्चित रूप से अभिप्राय व्यक्त करना साहस मात्र ही माना जायगा ।
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Marite aौर इनका मन्तव्य
लोकाशाह का अपना खास मन्तव्य क्या था, इसको इसके अनुयायी भी नहीं जानते । लौका को मौलिक मान्यताओं का प्रकाश उनके समोपकालवर्ती लेखकों की कृतियों से ही हो सकता है, इसलिए पहले हम लौका के अनुयायी तथा उनके विरोधी लेखकों को कृतियों के अाधार से उनके मत का स्पष्टीकरण करेंगे ।
लौकागच्छीय पति श्री भानुचन्द्रजीकृत "दयाधर्म चौपाई" के अनुसार लौंका के मत को हकीकत
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यति भानुचन्द्रजी कहते हैं - " भस्मग्रह के अपार रोप से जैनधर्म अन्धकारावृत हो गया था । भगवान् महावीर का निर्वारण होने के बाद दो हजार वर्षों में जो जो बरतारे बरते उनके सम्बन्ध में हम कुछ नहीं कहेंगे, जब से शाह लोंका ने धर्म पर प्रकाश डाला और दयाधर्म की ज्योति प्रकट हुई है उसके बाद का कुछ वर्णन करेंगे | १२ | "
"सोगराष्ट्र देश के लींबड़ी गांव में डुङ्गर नामक दशा श्रीमाली गृहस्थ बसता था । उसकी स्त्री का नाम था चूड़ा। चूड़ा वड़े उदार दिल की स्त्री थी, उसने संवत् १४५२ के वैशाख वदि १४ को एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम दिया लोका । लौंका जब श्राठ वर्ष का हुा तब उसका पिता शा. डुंगर परलोकवासी हो गया था | ३ | ४|"
"लौंका की फूफी का बेटा लखमसी नामक गृहस्थ था, जिसने लौंका का धनमाल अपने कब्जे में रक्खा था । लोका की उम्र १६ वर्ष की हुई तब उसकी माता भी स्वर्ग सिधार गई । लौका लीम्बड़ी छोड़कर ग्रहमदाबाद प्राया और वहां नारणावट का व्यापार करने लगा। हमेशा वह धर्म सुनने धौर पोपधशाला में जाता और त्रिकाल पूजा, सामायिक करता, व्या
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