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पट्टावली-पराग
का विरोध कर अपनी स्वयं की मान्यताओं को मूर्त रूप देकर अपने मत गच्छ स्थापित करने का उत्साह बढ़ा। ऐसे नये मतस्थापकों में से यहां हम दो मतों की चर्चा करेंगे, एक "लौकामत" की और दूसरी "कडुवामत" की। पहला मत मूर्तिपूजा के विरोध में खड़ा किया था, तब दूसरामत वर्तमानकाल में शास्त्रोक्त माचार पालने वाले साधु नहीं हैं, इस बात को सिद्ध करने के लिये ।
लौका कौन थे ?
__ लौकागच्छ के प्रादुर्भावक लौका कौन थे ? यह निश्चित रूप से कहना निराधार होगा। लौंका के सम्बन्ध में प्रामाणिक बातें लिखने का माधारभूत कोई साधन नहीं है, क्योंकि लौंकाशाह के मत को मानने वालों में भी इस विषय का ऐकमत्य नहीं है। लौंका के सम्बन्ध में सर्वप्रथम लौकागच्छ के यतियों ने लिखा है पर वह भी विश्वासपात्र नहीं। बीसवीं शती के लेखकों में शाह वाडीलाल मोतीलाल, स्थानकवासी साधु मरिणलालजी आदि हैं, पर ये लेखक भी लौका के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न दिशाओं में भटकते हैं। शाह वाडीलाल मोतीलाल लौकाशाह का जन्म अहमदाबाद में हुप्रा मानते हैं और इनको बड़ा भारी साहूकार एवं शास्त्र का बड़ा मर्मज्ञ विद्वान् मानते हैं, तब स्थानकवासी साधु मुनिश्री मणिलालजी अपनी पट्टावली में लौंका का जन्म "अहंटवाडा" में हुमा बताते हैं और लिखते हैं -
अहमदाबाद में आकर लौंका बादशाह की नौकरी करता था और कुछ समय के बाद नौकरी छोड़ कर पाटन में यति सुमतिविजय के पास वि० सं० १५०६ में यतिदीक्षा ली थी और अहमदाबाद में चातुमास्य किया था, परन्तु वहां के जैनसंघ ने यति लौंका का अपमान किया, जिससे वे उपाश्रय को छोड़ कर चले गये थे।
इसके विपरीत लौंका के समीपवर्ती काल में बमे हुए चौपाई, रास आदि में लोकाशाह को गृहस्थावस्था में हो परलोकवासी होना लिखा है । इन परस्पर विरोधी बातों को देखने के बाद लोकाशाह
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