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________________ १२ पट्टावली पराग ॥१४॥ तत्प? श्रीगुप्तास्वामी, ॥१५॥ तत्पट्टे श्री प्रार्यमंगुस्वामी, ॥१६॥ तत्प? श्री प्रार्यसुधर्मस्वामी, ॥१७॥ तत्प? श्री वृद्धवादधरस्वामी, ॥१८॥ तत्पट्टे श्री कुमुदचन्द्रस्वामी, ॥१६॥ तत्पट्टे श्री सिंहगिरिस्वामी, ॥२०॥ तत्प? श्री वयरस्वामी दशपूर्वघर, ॥२१॥ तत्पट्टे श्री भद्रगुप्ताचार्य स्वामी, ॥२२॥ तत्प? श्री मार्यनन्द स्वामी, ॥२३॥ तत्पट्टे श्री प्रार्थनागहस्ती स्वामी, ॥२४॥ तेणे वारे बोजी पट्टावलीमा सत्तावीसमे पाटे देवर (घि) गणि जेणे सर्व सूत्र पुस्तके चढाव्या ते समस्य जाणव्यो, मायनागहस्ती, तत्प? श्री रेवतस्वामी, ॥२५॥ तत्पट्टे श्री ब्रह्मदिनस्वामी, ॥२६॥ तत्पट्टे श्री संडिलसूरि, ॥२७॥ तत्प? श्री हेमवन्तरि, ॥२८॥ तत्प? श्री नागार्जुनस्वामी, ॥२६॥ तत्प? श्री गोवन्दवाचक स्वामी, ॥३०॥ तत्प? श्री संभूतिदिनवाचक स्वामी, ॥३१॥ तत्प? श्री लोहगिरिस्वामी, ॥३२॥ तत्पट्टे श्री हरिभद्रस्वामी, ॥३३॥ तत्पट्टे श्री सिलंगाचार्यस्वामी ॥३४॥ तिवारपनी (छी) १२ दुकाली जोगे पाट लोहडीवडी पोसाल मां चाल्या जात पौशालिक धर्म प्रवत्यों। पौशालिक कालि माहात्मा नामघरवुई छ ॥ पाट ३३ । ३४ सूची पूर्वधर छ, पछ पूर्व विद्या ढांको पोसाल प्रवर्ति जातां जातां पाट १० । १२ पोसाल मां थया, तिणे समें सूत्रने ढांकी अनेरा दहेरा पोशालना माहातम प्रत्यकरी पूजाऽर्धा धर्म चलायो, वीर पछी १२ सौ वर्षे देहरा प्रवा, जावत् महावीर पछी बेसहस्र वर्ष वुओं तिहां सूधी पोशाल धर्म प्रवर्तना थई । तेणे समें श्री गुजर देशे प्रणहल्लपुर पाटन ने विषे मोटी पौशाल सूरी सूरपाट प्रवति थई, तेरणे समे ते नगरमां लोकासाह इसई नामई विवहारी वसे छे, जावत सिद्धवंत छ, लिखत कला छ, ते माटे एकदा समे सूरि सूरे सिद्धान्त परत जुनी थाई जांणी लका साहर्ने लिखवा दीधी, ते लिखतां वीरवाणी सिधांत जाण्यों, १ परत पोती ने अर्थ लिखें, १ परत सुरिसर ने लिखी देखें, एम करतां ३२ सूत्र लिख्यां, तेणे समे सूरिशरे जाण्यो ते पोतानो प्रति पण लिखे छ पछ मंडारमाथी लिखवा दोषी नहीं। पाटन ना भंडार मा ४ सूत्र छै. बोजी प्रागमोक्त सर्व विद्यापण छ, पण ३२ सूत्र लकेसाहिं लिस्पांति श्रावक प्रागेवांची साधना गुरण विषाडे । वीरवारणी पोलखाववे इस करतां केतलाक सूत्र रुचि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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