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________________ पट्टावली - पराग " श्रावक थया, साध मूर्त मानता थया, तेणे समय मारवाड थी एक संघ से जानी जात्राएं जाई, तेमां ८ संघ मुखी छे, भाषा, भीदा, जगमाल, सरवा प्रमुख ते पाटरण प्राव्या, ते लकासाह नो नवीन धर्म प्रबोध सांभलवा श्राव्या, तेरणे प्रबोध दई सिद्धान्त प्रोटखाव्यो, तेणे पोसाली धर्म, देहरों, प्रतमा पुजा मुकी, सघियया, तारे लके साही सूत्र ३३ साधने ते सूप्य हवे, तुम्यों वाचो धर्म धुरंधर, त्यार पट्टी भरणादिक साधे वीरधर्मवारणी साघु धर्म देशे २ प्रवर्तना कोंधी, इम सूरिसरे जप्यो जे सर्वे ए धर्म ग्रहसे, तारि पोसालमाथी पाटधारों सूरि क्रियाउधारो निकल्या, नाम "तपगछ" घराणों, इम करतां भारषा, भीदाना साधप्रवर्त्या, तेणे प्राचार्यपद धरयो लके साहि धर्म प्रवर्ताव्यो ते माटे प्राचायें "लुंका नामे गच्छ स्थापना कीधी" लंकागच्छ स्थापना जागवी । श्रीवीरवारणी महापन्नवरणा सूत्र मां तथा दुसरा ग्रन्थ मां कह्यो छे, जे पंचमा प्रारा मां 'रूपा, जीवा दो धारीया भवई", ते प्राचार्य प्रेमना साध धर्म प्रवर्त्या, तेरणे समे संवत् १५०० मध्ये दक्षरण देशे निकलंकी राजा ने घरे धर्मदत्त पुत्र उपनो, लोक मां बुध अवतारे कहवांरणो, गुप्त परणे साधुधर्म प्रकासे, जिनशासन धर्मउदे करी संबुध कला ज्ञानप्रकासी पाचमां देवलोके देवता थया । तेलकगच्छ मां थया, तीर्थं गौत्री ते वीरवांगी सूत्र मांही छे, ते रूप रुष धर्म धूरंधर मंहत पुरुष धर्माचार्य भवप्रारणो उवारक यया तिल (तेह) ना पाट लिखिये छे॥ छ ॥ प्रथम पाट युगप्रधान श्री ६ श्री रुपरखजी (१), तत्ःट्टे श्री युगप्रधान श्री ६ जीवरुषजी जी ॥ २॥ तत्पट्टे यु० श्री ६ वरुद्धवरसंगाजी ॥३॥ तत्पट्टे यु० श्री ६ षी सघुषरसंगजी ॥४॥ तत्पट्टे यु० जसवंतजी ॥५u, तत्पट्टे यु० श्री ६ रूपसहजी ॥६॥ तत्वट्टे यु० श्री ६ दामोदरजी ॥७en, तत्पट्टे यु० ६ श्री क्रमसिहजी ॥८॥ तत्पट्टे युग० श्री ६ केशवजी ॥८॥, तत्पट्टे ० तेजसहनी ॥१०॥ तत्पट्टे यु० श्री ६ लख्यमचंद्रजी ॥११॥ तत्पट्टे श्री ६ श्री दुलसिहबी ॥१२॥ तत्पट्टे यु० श्री ६ श्री जगरूपजीजी जयजयवन्त, अस्मिन् जंबुद्वीपे श्रस्मिन् भरतखण्डे, दक्षण भरते, अस्मिन् देशे, अस्मिन् ग्रांमनगरे, अस्मिन् चतुमति चतुविष संग धर्म प्रबोधित तेहुना Jain Education International १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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