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________________ -धर्मरसायन 47 धनधान्यद्विपदचतुष्पदक्षेत्रान्याच्छादनानांद्रव्याणाम्। यक्रियतेपरिमाणंपञ्चमकम्अणुव्रतंभवति॥147॥ धनधान्य, द्विपद अर्थात् दो पैरों वाले दास-दासी आदि, चतुष्पद अर्थात् चार पैरों वाले पालतूपशु, खेत (खुली भूमि) तथा भवन आदि आच्छादितभूमिका परिमाण या परिसीमन करना- पञ्चम (अपरिग्रह नामक) अणुव्रत है। जंतु दिसावेरमणं गमणस्स दुजं च परिमाणं । तंच गुणव्वय पठमभणियं जियरायदोसेहिं ।।148|| यत्तु दिग्विरमणं गमनस्य तु यच्च परिमाणम् । तच्च गुणवतं प्रथमं भणितं जितरागदोषैः ।।148|| राग-द्वेष को जीत लेने वाले वीतराग परमात्मा के द्वारा विभिन्न दिशाओं में गमन का जो परिमाण या परिसीमन किया गया है, वह 'दिग्विरमण' नामक प्रथम गुणव्रत बतलाया गया है। मज्जारसाणरज्जुवंड लोहो य अग्गिविससत्थं । सपरस्स घादहे, अण्णेसिं व दादव्वं ॥149।। वहबंधपासछेदो तह गुरुभाराधिरोहणं चेव । णविकुणइजोपरेसिं विदियं तुगुणव्वयंहोइ।।1501 माजरिश्वरज्जुवण्टः लोहश्च अद्मिविषशस्त्राणि । स्वपरस्यघातहेतूनि अन्येषां नैव दातव्यानि॥149।। वधबन्धपाशच्छेदानि तथा गुरुभाराधिरोहणं चैव। नापिकरोतियः परेषां द्वितीयं गुणवतंभवति।।150|| जोअपने तथा दूसरे के वध के कारण हैं ऐसे बिल्ली, कुत्ता, रस्सी, दराँती, अग्नि, विष तथा लोहे आदि के शस्त्रास्त्र दूसरों को नहीं देने चाहिए। इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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