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धर्मरसायन
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दूसरों का वध, बन्धन, पाश (उन्हें जाल आदि में फँसाना) तथा छेदन (अंगभंग) नहीं करना चाहिए और उनपर बहुत अधिक भार नहीं लादना चाहिए - यह द्वितीय 'अनर्थदण्डविरमण' नामक गुणव्रत है।
वच्छच्छभूषणाणं तंबोलाहरणगंधपुप्फाणं । जंकिजइ परिमाणं तिदियं तु गुणव्वयं होइ।।151|| वस्त्रास्त्रभूषणानां ताम्बूलाभरणगन्धपुष्पाणाम् । यत्क्रियतेपरिमाणं तृतीयं तु गुणवतं भवति||151।।
वस्त्र, अस्त्र, भूषण, पान, आभरण, गन्ध, पुष्प आदि का परिसीमन करनातृतीय भोगोपभोगपरिमाण' नामक गुणव्रत है।
पंचणमोकारपयं मंगलं लोगुत्तमं तहा सरणं । णिच्चं झाएयव्वं उभए सज्झाहिं हिययम्मि ||15211 रुद्दविवज्जणं पि समदा सव्वेसु चेव भूदेसु । संजमसुहभावणा वि सिक्खासावुच्चएपढमा।।1531 पञ्चनमस्कारपदं मङ्गलं लोकोत्तमं तथा शरणम् । नित्यं ध्यातव्यं उभयोः सन्ध्ययोः हृदये ||152|| रुद्रातविवर्जनमपि समता सर्वेषु चैव भूतेषु । संयमशुभभावना अपि शिक्षा सा उच्यतेप्रथमा ||153||
पाँच नमस्कार पद, लोक में चार मंगल, चार उत्तम तथा चार शरण-इनका नित्यदोनों सन्ध्याओं में हृदय में ध्यान करना चाहिए; रौद्र एवं आर्तध्यानों का त्याग करना चाहिए ; समस्त प्राणियों के प्रति समत्व दृष्टि रखनी चाहिए तथा संयम का पालन करते हुए शुभ भावना रखनी चाहिये-यह प्रथम'सामायिक शिक्षाव्रत है।
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