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________________ 39 ----धर्मरसायन संपुण्णचंदवयणो जडमंउडविवजिओ णिराहरणो। पहरणजुवइविमुक्कोसंतियरो होइपरमप्पा॥122।। सम्पूर्णचन्द्रवदनः जटामुकुटविवर्जितो निराभरणः। प्रहरणयुवतिविमुक्त:शान्तिकरोभवति परमात्मा।।122|| पूर्णचन्द्र के समानमुखवाला; जटा, मुकुट तथा आभूषणों से रहित; आयुध एवं युवतियों से मुक्त तथा शान्तिकर (शान्तिप्रद) व्यक्ति ही परमात्मा होता है। णिभूषणो वि सोहइ कोहोरागप्रभओमणो णस्थि। जह्मा वियाररहिओणिरंबरोमणोहरोतसा ।।1231 निर्भूषणोऽपिशोभते क्रोधरागप्रभवः मनः नास्ति। यस्माद्विकाररहितो निरम्बरोमनोहरस्तस्मात्।।123।। जिसके मन में क्रोध और राग नहीं हैं, वह आभूषण-रहित होने पर भी शोभित होता है। इसी प्रकार जो विकारों से रहित है वह दिगम्बर (वस्त्ररहित) होकर भी मनोहर प्रतीत होता है। (वही परमात्मा है।) जह्मा सो परमसुही परमसिवो वुच्चए जिणो तह्मा। देविंदाण वि देओ तह्मा णामं महादेओ ।।12411 यस्मात्स परमसुखी परमशिव उच्यते जिनस्तस्मात्। देवेन्द्राणामपि देवस्तस्मान्नाम्ना महादेवः ।।124|| क्योंकि वह परमात्मा परम सुखी है, इसलिए उसे 'परम शिव' कहा जाता है और क्योंकि वह देवेन्द्रों का भी अधिदेव है, इसलिए उसका नाम 'महादेव' भी है। अव्वावाहमणंतं जह्मा सोक्खं करेइ जीवाणं । तह्मा संकरणामो होइ जिणो णतिथ संदेहो ।।125।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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