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________________ धर्मरसायन अव्याबाधमनन्तं यस्मात् सुखं करोति जीवानाम् । तस्माच्छंकरनामा भवति जिनो नास्ति सन्देहः ||125|| क्योंकि वह जीवों को अबाध तथा अनन्त सुख प्रदान करता है इसलिए उस जिन का नाम 'शंकर' है - इसमें कोई सन्देह नहीं है । लोयालोयविदण्हू तह्मा णामं जिणस्स विण्डूत्ति | जा सीयलवयणो तह्मा सो वुच्चए चंदो ||1261 लोकालोकवित् तस्मात् नाम जिनस्य विष्णुरिति । यस्माच्छीतलवचनस्तस्मात् स उच्यते चन्द्रः ॥ 126ll क्योंकि वह लोक एवं अलोक को जानता है इस कारण से उसका नाम 'विष्णु' है और क्योंकि उसके वचन शीतलता प्रदान करते हैं इसलिए उसे ' चन्द्र' कहा जाता है । अण्णाणाण विणासो विमलाण भवइ बोहयरो । कम्मासुरणिड्डहणो तेण जिणो वुच्चए सूरो ||127ll अज्ञानानां विनाशक: विमलानां भवति बोधकरः । कर्मासुरनिर्दहनः तेन जिन उच्यते सूर्यः ||127|| 40 वह जिन अज्ञान का विनाशक है, निर्मल हृदयवालों को बोधप्रदान करता है तथा कर्मरूपी असुरों का विनाशक है इसलिए उसे 'सूर्य' कहा जाता है । अण्णाणमोहिएहिं य पंचेंदियलोलुएहिं पुरिसेहिं । जिणणामाई परेसिं कयाइं गुणवज्जयाणं पि ॥28॥ अज्ञानमोहितैश्च पञ्चेन्द्रियलोलुपैः पुरुषैः । जिननामानि परेषां कृतानि गुणवर्जितानामपि || 128ll Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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